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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 409 भगवान् महावीर और महात्मा गांधी जैनप्रदीप (देवबन्द) के अप्रैल एवं मई-जून 1930 के अंकों में प्रकाशित उर्दू लेख के हिन्दी रूपान्तरण के सम्पादित अंश। 2500 साल पहले की तारीख से पता चलता है कि भारतवर्ष में अंधेरगर्दी थी। जुल्म व सितम का बाजार गर्म था। यह वह जमाना था कि देवी देवताओं के नाम पर खून की नदियां बहाई जाती थीं। देव मन्दिर तक तलघरों का काम देते थे। इनकी दीवारें बेजुवान जानवरों के खून से रंगी हुई दिखलाई देती थीं। घोर हिंसा फैली हुई थी और ऐसे पाप, अत्याचार धर्म के नाम पर, देवी-देवताओं के नाम पर किये जाते थे। तमाम जीव दुखी थे कोई रक्षक नजर नहीं आता था। इस नाजुक जमाने में श्री महावीर भगवान् का जन्म हुआ। भगवान् ने कहा कि घबराओ नहीं तुम्हारा उद्धार मैं करूँगा। तुम सब बराबर हो, ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य और शूद्र सब इन्सान हैं, सबकी आत्माएं पवित्र हो सकती हैं। सब इन्सान एक बराबर हैं, सब का उद्धार शुद्ध आचरण से ही हो सकता है। क्या बादशाह! क्या रियाया! क्या अमीर! क्या गरीब! क्या विद्वान! क्या मूर्ख! सब ही इन्सान हैं और इन्सानी हैसियत से सब का दर्जा एक है। धर्म ही सच्चाई है। झूठ फरेब हिंसा चोरी जिनाकारी वगैरह पापों का तर्क करके धर्म का पालन करो।....... ___ भगवान् महावीर के बारे में साधू टी0 एल0 वास्वानी लिखते हैं-. "इन महावीर का, जैनियों के इस महापुरुष का चरित्र कितना सुन्दर है वह बादशाही घराने में जन्म लेते हैं और घर को त्याग देते हैं। वह अपना धन गरीबों को दान में दे देते हैं और सन्यासी होकर जंगल में आत्मध्यान और तपस्या के लिए चले जाते हैं। कुछ लोग उन्हें वहां मारते हैं, तकलीफें देते हैं, लेकिन वह शान्त और मौन हैं।" ___ भगवान् ने कहा कि इंसान मुकम्मिल नहीं है। इसमें बहुत सी कमियां हैं, इसलिये अगर मुझे इस जुल्मोसितम को दुनिया के तख्ते से उठा देना है तो पहिले मुझे आदर्श बनना चाहिए, मुकम्मिल बनना चाहिये, तभी काम होगा। इसलिये बारह साल सख्त रियाजत की और बहुत सी तकलीफों का सामना भी किया और आखिर मुकम्मिल होकर ही छोड़ा। आपने साबित कर दिया कि तशदुद को अदम तशदुद ही जीत सकता आपने सन्यास लेते वक्त पांच महव्रत लिये थे। 1-अहिंसा, 2- सच बोलना, 3- चोरी नहीं करना, 4- ब्रह्मचर्य का पालन, 5- अपरिग्रही रहना, यानि दुनियां की चीजों में मोह न रखना या यूं कहो कि अपने पास जरूरत से ज्यादा सामान न रखना। भगवान् महावीर ने केवलज्ञान हासिल करके उपदेश दिये और कहा कि हर एक प्राणी धर्म का पालन कर सकता है, क्या ब्राह्मण! क्या शूद्र! क्या वैश्य! क्या गरीब! क्या राजा! क्या मर्द! क्या औरत! सिर्फ इन्सान ही क्यों बल्कि पशु-पक्षी भी धर्म का पालन कर सकते हैं। धर्म बेजुबान जानवरों और इन्सानों को कत्ल करके यज्ञ करने में नहीं है, बल्कि धर्म तो अहिंसा परम धर्म है। धर्म का स्वरुप “आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्" है। यानि जो अपनी आत्मा अपने जमीर के खिलाफ हो वह दूसरे के लिए हरगिज न करो। जैसे अगर तुम्हें कोई मारता है तो तुम कितना दु:ख महसूस करते हो, इस तरह हमारा धर्म है कि हम बेजुबान - For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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