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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 365 कार्यकारिणी सदस्य, अ) भा० कांग्रेस कमेटी के पीड़ित रहा, लेकिन देश-प्रेम ने परिवार को प्रमुखता सदस्य, अ) भा० कांग्रेस अधिवेशन स्वागत समिति नहीं दी। आजादी की लड़ाई लड़ने वाले योद्धाओं में जयपुर (1948) के संयुक्त मंत्री आदि अनेक पदों बहुत कम ऐसे परिवार हैं, जिन्होंने परिवार को गौण पर रहे। इसी समय आप राजस्थान मंत्रिमण्डल में और देश को प्रमुखता प्रदान की। आजादी के प्रणेताओं उद्योग तथा व्यापार मंत्री रहे। राजस्थान ग्रामोद्योग बोर्ड ने जो भी कार्य सौंपा उसे आपने निर्भीकता पूर्वक के अध्यक्ष पद को भी आपने सुशोभित किया था। पूरा किया। करो या मरो आंदोलन में 1942 में 1051 में ढढढा जी ने कांग्रेस से त्यागपत्र आपको एक वर्ष की कठोर सजा एवं 100/- जुर्माना देकर सर्वोदय आन्दोलन में प्रवेश किया और तभी हुआ। जुर्माना अदा न करने पर दो माह की और से इससे जुड़े हुए हैं। आपने श्री जयप्रकाश नारायण सजा झांसी जेल में काटी। के साथ इंग्लैण्ड, युरोप, अफ्रीका, जापान, दक्षिण आ0-(1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) र0 नी0, पृष्ठ-34 ___(3) डॉ0 बाहुबलि कुमार द्वारा प्रेपित विवरण कोरिया आदि की यात्रायें की थीं। आप सर्व सेवा संघ, राजस्थान सेवक संघ, राजस्थान खादी संघ श्री सुखलाल जैन आदि के अध्यक्ष रहे हैं। ढढ्ढा सा0 ने जयपुर में सागर (म0प्र)) के श्री सुखलाल जैन, पुत्र-श्री ग्रामीण अर्थशास्त्र का शोध तथा अध्ययन करने के हीरालाल का जन्म 1901 में हुआ। 1921 में लिए 'कमारप्पा ग्राम स्वराज्य संस्थान' की स्वतंत्रता संग्राम में आपने भाग लिया तथा 6 माह का स्थापना की। सम्प्रति आप इसके अध्यक्ष हैं। आप कारावास भोगा। 'सत्याग्रह मीमांसा' मासिक पत्रिका का सम्पादन भी आ) (1) म0 प्र0 स्वाा सै0भाग-2, पृष्ठ- 68 कर रहे हैं। (2) आ0 दी0, पृष्ठ 84 आ) (1) रा) स्वा से), पृष्ठ-592 (2) जै0 स) रा0 सिंघई सुगमचंद जैन अ0, पृष्ठ-70 (3) राजस्थान में रचनात्मक कार्य (परिचय ग्रन्थ) पिण्डरई, जिला-मण्डला (म0प्र0) के जमींदार पृष्ठ-64 (4) स्व) प0 सिंघई सुगमचंद जैन, पुत्र-श्री सिंघई मोहनलाल जैन श्री सुखलाल इमलिया का जन्म 1916 में हुआ। 14 वर्ष की अल्पायु श्री सुखलाल इमलिया का जन्म 1919 में में आप स्वाधीनता आन्दोलन में कूद पड़े। अपना ललितपुर (उ0प्र0) में हुआ। आपके पिता का नाम राजनैतिक परिचय देते हुए आपने लिखा है कि श्री परमानंद था। अपने अग्रज 1930 की बात है, मेरे बड़े दादा, जिनके पास मैं श्री वृन्दावनलाल इमलिया रहता था, कट्टर कांग्रेसी थे, उन्होंने 1930 में विदेशी (इनका परिचय इसी ग्रन्थ वस्त्रों की होली जलाई थी, यह दृश्य देख पुरी में अन्यत्र देखें) की प्रेरणा जानकारी के लिए मेरी जिज्ञासा बढ़ी और मेरा मन से आप परिवार के विदेशी शासन के प्रति विद्रोह से भर गया। भरण-पोपण की परवाह न विदेशी वस्त्रों की होली जलाने के कारण हमारे करते हुए भारत माता को पूर्वजों की दो बन्दूकों, जो जमींदार होने के कारण स्वतंत्र कराने हेतु स्वयं भी सेनानियों की कतार में सुरक्षार्थ हमें मिली थीं, को शासन ने जब्त कर लिया। खड़े हो गए। जिससे परिवार गहन अर्थाभाव से 1940 में मण्डला से श्री श्यामलाल जैन व श्री For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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