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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 351 श्री शीतलप्रसाद जैन अधिकारियों ने गिरफ्तार कर मैदागिन टाउन हाल में क्रान्तिकारियों का गढ़ रहे श्री स्याद्वाद जज के सामने प्रस्तुत किया। मेरे पास जो पैम्पलेट थे, महाविद्यालय वाराणसी के स्नातक श्री शीतलप्रसाद उनके आधार पर दो साल का कठोर कारावास तथा का जन्म ग्राम-बड़ागांव, 50/- रु0 जुर्माना की सजा दी गई। जिला-मेरठ (उ0प्र0) में 5 जिला जेल में अस्वच्छ वस्त्र और गन्दे भोजन अगस्त 1918 को हुआ। के विरोध में दो बार चार-चार दिन की भूख हड़ताल आरम्भिक शिक्षा के बाद आप की। मांगें तो मान ली गईं, पर अन्यों के साथ मुझे उच्च शिक्षार्थ वाराणसी के भी सजा के वतौर केन्द्रीय कारागार में स्थानांतरित कर स्याद्वाद महाविद्यालय में दिया गया, जहाँ कातिल, डकैत जैसे अपराधी रखे जाते 1934 में प्रविष्ट हुए। आपने थे। वहाँ बैठने की अव्यवस्था का विरोध करने पर एम0ए0(हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी) एल0एल0बी0 आदि मेरी असह्य पिटाई हुई और हथकड़ी के साथ पैरों में परीक्षायें पास की। सम्प्रति आप मुजफ्फरनगर में रह बेड़ी पहनाकर काल कोठरी में डाल दिया गया। रहे हैं। मुलाकातों पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया। जुलाई 1943 ____20-9-95 को जब हम आपके घर पहुंचे तो में सरकार व कांग्रेस में समझौता होने के कारण भोगी संस्था-भाई होने मैं (कपूरचंद जैन) भी स्याद्वाद गई सजा को पर्याप्त मानकर मुक्त कर दिया गया पर महाविद्यालय का स्नातक रहा हूँ) के नाते वात्सल्य बनारस मण्डल से निष्कासित कर दिया। एम0ए0 भाव से आपने जो आत्मीय स्नेह दिया वह शब्दातीत अन्तिम वर्ष की परीक्षा देने की अनुमति तक शासन है। पुरानी स्मृतियों में खोते हुए आपने बताया- 'बनारस से नहीं मिली। यह निष्कासन प्रतिबन्ध आजादी के जाते ही मैं स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रिय हो गया बाद ही समाप्त हुआ।" था, विद्यालय की परम्परा भी यही थी। हमने छात्रावास आ0- (1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) सा0 20-9-1995 में ही वीर सैनिक संघ (v.s.s.) की स्थापना की। थी, जिसमें छात्रों को सैनिक वर्दी में सैनिक शिक्षण श्री पं० शीलचंद जैन शास्त्री की व्यवस्था थी। विभिन्न सार्वजनिक समारोहों में भी _ 'वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि' हम सेवा कार्य करते थे। 1942 के आन्दोलन में संघ व्यक्तित्व के धनी, प्रखरवक्ता, संघर्षशील परिवेश में के सदस्यों ने खुलकर भूमिगत रहते हुए कार्य किया। जीने वाले पं0 शीलचंद जैन छात्रावास में लीथो प्रेस तैयार करके, उसमें हजारों की शास्त्री जैन समाज की उन संख्या में क्रान्तिकारी पैम्पलेट छापे गये, जिनमें विदेशी विभूतियों में से एक थे, जिन शासन को उखाड़ फेंकने के लिए अपना सर्वस्व पर हम सबको गर्व है। उनके बलिदान करने का आह्वान किया गया था। आठ-दस हृदय में राष्ट्रोन्नायक व्यक्तित्व छात्रों की टोलियाँ प्रात: निकल पड़तीं और देर रात और जीवन की प्रगति में लौटतीं। डाकखानों, रेलवे स्टेशनों, विद्युत कार्यालयों आदि अखण्ड विश्वास रखने को ठप्प करने के साहसिक कार्य हमने किये। अनेक वाले सजहगुणों का रत्नाकर विद्यमान था। समाज अवसरों पर मरने से बाल-बाल बचे। 24 अगस्त 1942 हित और समाज सुधार की दृष्टि से वे नई पीढ़ी के को सारनाथ मेले में जाते हुए सी0आई0डी0 के आदर्श थे। For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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