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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 344 स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री विरधीचंद गोयल वहीं सभी लोगों के बीच में गांधी जी के स्वराज्य पर पेशे से वकील श्री विरधीचंद गोयल का जन्म भी चर्चा होती थी, इस कारण विश्वराम जी को बचपन 5 जुलाई 1923 को ग्राम धूमा (सिवनी) म0 प्र0 में से ही देशप्रेम की बातें सुनने को मिली। हुआ। आपके पिता का नाम आपकी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव से । श्री हजारी लाल था। आपने किलोमीटर दूर धनगुवां गांव के स्कूल में हुई, उसी जबलपुर में विधि स्नातक स्कूल में आपकी मित्रता श्री नरेन्द्र कुमार विद्यार्थी तक शिक्षा ग्रहण की। (इनका विस्तृत परिचय इसी ग्रन्थ में अन्यत्र देखें।) विद्यार्थी जीवन से ही आप से हई। श्री विश्वराम जैन ने लिखा है कि 'मैं तो आगे स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय न पढ़ सका पर विद्यार्थी जी विभिन्न विद्यालयों में हो गये थे। विद्यार्थी कांग्रेस के पढते हये बनारस पहुंच गये। जब भी वह छुट्टियों संगठन में आपने सहयोग किया था। 1941 में तिलक में घर आते या मैं उनसे मिलने जाता. देश की आजादी भूमि तलैया, जबलपुर में आपने सर रिजनाल्ड मैक्सवे के संबंध में हम ढेर सारी बातें करते। उनकी बातों का पुतला जलाया था। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन से एवं जो किताबें उन्होंने मुझे पढाई इन सबसे लगने में आप भूमिगत रहकर जबलपुर, मण्डला, छिन्दबाडा लगा कि 'देश की आजादी के लिये प्राण देना पड़े आदि में तोड़-फोड़ का कार्य करते रहे, अन्ततः 26 या जेल में मरना पडे तो भी जीवन सार्थक है।" सितम्बर 1942 को गिरफ्तार कर लिये गये और 4 परिणामत: आपने अपने साथियों मई 1943 तक मण्डला, दमोह एवं जबलपुर म रामसहाय तिवारी, श्री बाबूलाल चतुर्वेदी, रामशिकन नजरबंद रहे। सिवनी तहसील भूदान समिति के आप जी आदि के साथ आन्दोलन में भाग लिया। देशप्रेम संयोजक थे। आपका स्वभाव बडा सरल एवं मद था। की भावना मन में तो बचपन से ही थी लेकिन अल्प बीमारी के कारण 5 सितम्बर 1993 को आपका आंदोलन के माध्यम से सक्रियता आई। अनेक बार सिवनी में निधन हो गया। अंग्रेजी सरकार का विरोध करने पर पुलिस द्वारा आO- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-239 (2) प्रताड़ना भोगनी पड़ी, जेल में रहना पड़ा। प्रजामंडल श्री नरेश दिवाकर द्वारा प्रेषित परिचय। आंदोलन से भी आप जुड़े रहे। अनेक बार भूमिगत श्री विश्वराम जैन भी होना पड़ा। श्री विश्वराम जैन का जन्म 30 अक्टूबर 1924 स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आपकी देश सेवा में को ग्राम पिपरिया (छतरपुर) कोई कमी नहीं आई। जनसेवा आपका धर्म बन गया। म0प्र0 में हुआ। आपके पिता अपने क्षेत्र में आपके प्रति जनता में एक सम्मान की का नाम श्री महाल जन भावना है। आयुर्वेद के प्रेमी होने के कारण आप अपने था। आपके पिता लोक नरखों से हजारों लोगों की प्रतिवर्ष नि:शुल्क सेवा करते संगीत के गायक थे। रात में हैं। आप संगीत प्रेमी हैं, साथ ही ज्योतिष के भी जानकर जब गांव के लोग फाग भजन हैं। अपने ग्राम में सैकड़ों वृक्षों को लगाना आपके प्रकृति आदि का आनंद उठाते थे, तब प्रेम का परिचायक है। 1975 से 90 तक बीस सूत्रीय For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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