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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 316 -स्वतंत्रता संग्राम में जैन ___ भले बनने की आकांक्षा तो सभी में होती है। श्री रमेशचंद जैन घोड़ावत पर बिना दूसरों की भलाई किये मनुष्य भला कैसे थांदला, जिला-झाबुआ (म0प्र0) निवासी बन सकता है। अतः हर मनुष्य का कर्तव्य है कि श्री रमेशचंद जैन घोडावत, पुत्र- श्री रखबचंद जैन जहाँ तक बने असहायों की सहायता तथा परोपकार का जन्म 1922 में हुआ। 1942 के आन्दोलन में करते रहना चाहिए। जो समर्थ नहीं हैं, उन्हें अपनी आप सक्रिय रहे। फलत: गिरफ्तार किये गये और शक्ति और सहयोग देना चाहिए। जब हम दूसरों को देश निकाले की सजा आपको दी गई। भलाई करेंगे तभी हमें यश प्राप्त होगा। आ0-(!) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-4, पृष्ठ-146 __8 दिसम्बर 1984 को जबलपुर में आपका श्री रवीन्द्रनाथ जैन देहावसान हो गया। रतनलाल जी की स्मृति को अध्यापन, पत्रकारिता और गैस वितरक जैसे चिरस्थायी बनाने के लिए चिरमिरी (म0 प्र0) में व्यवसायों से जुड़े, मूलतः महाराष्ट्र निवासी और 'मालवीय नगर' की स्थापना की गई है, जिसमें भोपाल (म0प्र0), प्रवासी श्रमिकों व नागरिकों के लिए सुव्यवस्थित गृहों का श्री रवीन्द्रनाथ जैन, पुत्रनिर्माण किया गया है। मालवीय जी पर दो पुस्तकें श्री रतन साह जैन का भी प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रथम 'काले हीरे का जन्म देऊल गांव राजा, जिला- बुलढाना (महाराष्ट्र) में खम्भा' जो न्यायमूर्ति श्री गुलाब गुप्ता ने लिखी है 15-4-1917 को हुआ। बाद तथा जिसका सम्पादन मालवीय जी की पुत्री श्रीमती | में आप कारजा आकर रहने सुधा पटोरिया ने किया है। द्वितीय 'श्री रतनलाल लगे। आपने कारंजा, वाराणसी व पूना में शिक्षा पाई। मालवीय स्मृति ग्रन्थ' जिसका सम्पादन श्रीमती सुधा कुछ समय आपने सोलापुर गुरुकुल में अध्यापन पटोरिया तथा श्री राजेन्द्र पटोरिया ने किया है। कार्य किया। आप 1945 से 1452 तक 'लोकशक्ति' आ0- (1) श्री रतनलाल मालवीय स्मृति ग्रन्थ (2) भारत (दैनिक) पुणे के उपसम्पादक, 'मातृभूमि' (अकोला) का संविधानिक विकास और स्वाधीनता संघर्ष तथा 'राष्ट्रसेवा' (नाशिक) के सम्पादक रहे। श्री रमेशचंद जैन आपने सागारधर्मामृत का मराठी भाषा में अनुवाद वारासिवनी, जिला-बालाघाट (म0प्र0) के श्री किया है। कुछ समय शोध कार्यों एवं जिला गजेटियर रमेशचंद जैन, पत्र श्री पन्नालाल जैन का जन्म 1926 के सम्पादन का काम भी आपने किया। स्वतंत्रता में हआ। विद्यार्थी जीवन में आपने शासकीय स्कल सेनानी होने के कारण सेवानिवृत्ति के पश्चात् आपको का बहिष्कार किया एवं 1942 में 20 अगस्त को गैस वितरक का कार्य मिला है। धारा 144 का उल्लंघन कर विशाल जुलूस निकाला, 1942 के आन्दोलन के समय आप सोलापुर फलतः पुलिस की गोली से आपका दाहिना पैर में एम0ए0 द्वितीय वर्ष के छात्र थे। वहीं आपने जख्मी हो गया। फिर भी पुलिस आपको पकड़ नहीं आन्दोलन में हिस्सा लिया। फलत: गिरफ्तार हुए और सकी। आजादी के बाद शासन ने सम्मान पत्र देकर 6 माह का सश्रम कारावास आपने भोगा। अपनी आपका सम्मान किया। जेलयात्रा की यादें ताजा करते हुए आपने लिखा है आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-189 कि -"बन्दी बनते ही जेल में पुलिस अधीक्षक ने मझसे For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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