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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रथम खण्ड मैंने अपने नगर के जेल यात्रियों की एक बैठक बुलाई, अपने विचार रखे, सभी ने समर्थन दिया। 'स्वतंत्रता संग्राम सैनिक संघ' नाम का संगठन बनाया। शहर के बाद जिला का संगठन बनाया, जिले की बैठक की। फिर मैंने मध्यप्रदेश का दौरा किया और 1956-57 में मध्यप्रदेश स्वतंत्रता संग्राम सैनिक संघ' की नींव इसकी प्रथम बैठक इटारसी में हुई, इसके मुख्य अतिथि तत्कालीन वित्त मंत्री श्री मिश्रीलाल जी गंगवाल (जैन) थे। दौड़-धूप, निरंतर श्रम और भगीरथ प्रयत्न करने के बाद मैं प्रांतीय सम्मेलन करने में सफल हो गया। 19 एवं 20 सितम्बर 1957 का दो दिवसीय सम्मेलन भोपाल के नवाब शाही के दरबार हाल कक्ष में हुआ। इस सम्मेलन का उद्घाटन वित्त मंत्री श्री मिश्रीलाल गंगवाल ने किया। मुख्यअतिथि मुख्यमंत्री डॉ0 कैलाशनाथ काटजू का उद्बोधन हुआ व अध्यक्षता सेठ गोविन्द दास जी ने की। सम्मेलन की सफलता के लिये तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ0 राजेन्द्रप्रसाद जी 'देशरत्न' ने अपना संदेश आशीर्वाद रूप में भेजा था। मध्यप्रदेश के बाद मैंने सभी प्रांतों का दौरा किया। सभी प्रदेशों में संगठन बनवाये। 1958 का बंगाल प्रांतीय सम्मेलन कलकत्ते के म्यूनिसपल हाल में हुआ, जिसमें 10 से 20 साल की सजा वाले, फांसी की सजा, कालेपानी की सजा वाली महान् विभूतियां आईं, उसमें बड़े ही उत्तेजनापूर्ण भाषण हुए, मेरा सम्मान भी किया गया। मैंने वहाँ अपने भाषण में कहा- 'मैं आज आप देशभक्तों और महान् विभूतियों के दर्शन पाकर कृतार्थ हो गया।' मैं तो आप जैसी महान् मूर्तियों की पैरों की धूल भी नहीं हूँ। मेरी अभिलाषा है कि बंगाल प्रान्त आगे आवे और इस संगठन को सम्हाले । ' प्रांतों के संगठन बनाने के बाद मैं राष्ट्रीय स्तर के संगठन बनाने पर सोचने लगा और इसके लिये सरल उपाय यह सोचा कि राष्ट्रीय स्तर पर एक सम्मेलन Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजधानी दिल्ली में हो। अब सम्मेलन बुलाने पर गंभीरता से भगीरथ प्रयत्न में लग गया। 305 पुन: अखिल भारतीय सोचने लगा और दूसरे यद्यपि मुझे अत्यधिक श्रम करना पड़ा, परन्तु अधिकतर प्रांतों में जाकर संगठन बनवाने के प्रत्यन से देशभर के नेताओं, संसद सदस्यों आदि से परिचित हो चुका था। मुझे लोग मेरे नाम से जानने लगे थे। एक वर्ष के निरंतर प्रयास के बाद उड़ीसा प्रदेश के सांसद सामान्त सिन्हयार को राजी करने में सफल हुआ। वे संयोजक बने और 1959 के 20-21 अक्टूबर को दिल्ली के टाउन हाल में देश का 'प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम सैनिक सम्मेलन' बाबू जगजीवन राम जी केन्द्रीय मंत्री की अध्यक्षता में हुआ। सम्मेलन अभूतपूर्व रहा। सम्मेलन के अंत में चुनाव हुआ । सर्व सम्मति से महान् क्रांतिकारी राजा महेन्द्र प्रताप जी को अध्यक्ष चुना गया, उन्होंने बड़े स्नेह से मुझे मंत्री बनने का आदेश किया, परन्तु मैंने उन्हें अपनी असमर्थता बताते हुए दिल्ली के ही उपसभापति व मंत्री आदि विशेषकर सांसदों को ही बनाने का निवेदन किया। समिति भी बन गई, मैं राष्ट्रीय मुख्य समिति (वर्किंग कमेटी) का सदस्य हो गया। For Private And Personal Use Only मैं लोकसभा में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को सम्मानजनक राहत व सुविधायें दिये जाने का प्रस्ताव लाना चाहता था। मैं लोकसभा के अवसर पर दिल्ली आता, धर्मशाला ठहरता और प्रत्येक प्रांत के सांसदों से चर्चा करता कि इस विषय का प्रस्ताव आप संसद में रखें। पर दो वर्ष तक दिल्ली में सांसदों के चक्कर लगाये। किसी से कुछ भी सहायता न मिली। अपने हाथ से भोजन धर्मशाला में बनाता और सांसदों के चक्कर लगाता, यही क्रम काम का रहा। श्रम का फल मिला। प्रसिद्ध वयोवृद्ध श्रमिक नेता श्री शिन्ननलाल सक्सेना, वरिष्ठ सांसद से जब मैं तीसरी बार अपना निवेदन करने गया, तो उन्होंने
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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