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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org स्वतंत्रता संग्राम में जैन व्यक्ति ऐसी खोज करने में भी परिश्रम कर सकता है। अस्तु, अधिकांश स्थानों पर लोगों ने भरपूर सहयोग दिया। सभी की चर्चा विस्तारमय से करना सम्भव नहीं है, फिर भी कुछ के नाम देने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहे हैं। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11-12 दिसम्बर 1994 को सहारनपुर में प्रसिद्ध साहित्यकार श्री कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' के जब दर्शन किये तो वे जिस आत्मीयता से मिले वह शब्दातीत है। उनके ये शब्द आज भी कानों में गूंज रहे हैं, 'आप जो श्राद्ध जैन सेनानियों का कर रहे हैं वह अनूठा है।' सहारनपुर में प्राचार्य डॉ0 रूपचंद जैन, बाबू विशाल चंद जैन, डॉ० रामशब्द सिंह, श्री अखिलेख मिश्र आदि का विशेष सहयोग रहा। लौटते हुए रुड़की में डॉ0 अशोक जैन का आतिथ्य भी हमने स्वीकार किया। छह मई 1995 को पुनः श्री अयोध्याप्रसाद गोयलीय की पुस्तकों के अन्वेषण हेतु गये। पुस्तकें तो मिलीं पर जमानत के बाद। देवबन्द के श्री कुलभूषण जैन ने अपने दादा स्व0 ज्योति प्रसाद के जब्तशुदा लेख की मूल उर्दू कापी की फोटो स्टेट सरलता से हमें प्रदान कर दी। छिन्दवाड़ा और डिण्डोरी प्रवास के दौरान श्री प्रबोधचंद, एडवोकेट और श्री राजू भैय्या के पारिवारिक जनों ने जो आवभगत की वह हमारी स्मृति-मंजूषा के अमूल्य रत्न बन गये हैं। आभार XXXV जबलपुर में 'मध्यप्रदेश स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संघ' के संस्थापक- मंत्री श्री रतनचंद जैन ने अपनी संचित सामग्री का अवलोकन जिस सरलता से कराया। उससे लगा कि दुनिया में आज भी सरल और सहृदय लोग हैं। फिर तो पत्रों का सिलसिला निरन्तर चलता रहा। वे कार्य के प्रति उत्साहित करते रहे। खेद है कि इस ग्रन्थ को देखे बिना ही वे स्वर्ग सिधार गये। उन्हें हमारी विनम्र श्रद्धांजलि। राष्ट्रीय अभिलेखागार तथा राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली भी अनेक बार जाना हुआ, वहाँ के अधिकारियों व कर्मचारियों ने जो सहृदयता दिखाई उसके लिए आभारी हैं। उदयपुर में श्री नाथूराम जैन, एडवोकेट ने संविधान की मूल प्रति से भ० महावीर के चित्र का फोटोग्राफ करवाने में अनुपम सहयोग दिया। दमोह के श्री सिंघई संतोष कुमार ने कुण्डलपुर प्रवास में आवासादि की उत्तम व्यवस्था की। दिल्ली प्रवास में प्रसिद्ध गांधीवादी श्री फूलचंद जैन ने दिल्ली जेल के स्वतंत्रता सेनानियों की जानकारी दी। प्रसन्नता का विषय है कि श्री फूलचंद जैन की पुस्तक 'बन्दीनामा' के तीन खण्ड प्रकाशित हो गये हैं। 'लौकिकानां हि साधूनामर्थं वागनुवर्तते । ऋषीणां पुनराद्यानां वाचमर्थोऽनुधावति ॥ ' सन्तशिरोमणि परमपूज्य दिगम्बर जैनाचार्य आचार्य विद्यासागर जी महाराज की प्रेरणा और आशीर्वाद न मिला होता तो यह कार्य इतने विशाल और प्रामाणिक रूप में न हो पाता। हमने लगभग 100-125 पृष्ठों में सेनानियों की एक सूची मात्र छापने का विचार किया था, किन्तु 1993 में श्रवणबेलगोल से लौटते हुए हम अचानक आचार्यश्री के दर्शनार्थ रामटेक उतर गये। चर्चा के दौरान हमने अपनी योजना बताई और कहा कि 'हम कुछ समय से सामग्री का संकलन कर रहे हैं।' तब आचार्यश्री ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि 'ग्रन्थ की विशालता की चिन्ता मत करो, दो या तीन खण्ड भी निकालना पड़ें तो कोई बात नहीं, पर सभी सामग्री प्रामाणिक होना चाहिए' सच है, लौकिक सत्पुरुषों की वाणी अर्ध के पीछे चलती है परन्तु आद्य अर्थात् महाऋषियों की वाणी के पीछे-पीछे अर्थ स्वयं चलता है For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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