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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir XXXIV स्वतंत्रता संग्राम में जैन विदेशी एवं हिन्दीतर व्यक्तियों के नामों के हिन्दी रूपान्तरण सभी स्थानों पर एक से उपलब्ध नहीं होते, अतः ऐसे रूपान्तरणों में लिपि सम्बन्धी अन्तर हो सकते हैं। इसी प्रकार सेनानियों के नामों तथा उनके जन्मस्थान आदि के नामों में भी लिपि सम्बन्धी अन्तर हो सकते हैं। __ हमें शहीदों/सेनानियों/प्रमुख व्यक्तियों के जन्म-मृत्यु, जेल-यात्रा आदि की जो तिथियाँ मिलीं, वे ईस्वी सन्/विक्रम संवत्/वीर निर्वाण संवत् आदि में मिली हैं। एकरूपता लाने के लिए यहाँ यथासम्भव ईस्वी सन् का प्रयोग किया है अतः गणना में महीनों का अन्तर हो सकता है। कुछ घटनाओं की तिथियाँ अलग-अलग पुस्तकों में अलग-अलग हैं, यद्यपि एकरूपता का पूरा प्रयास किया गया है, फिर भी कहीं-कहीं अन्तर हो सकता है। सेनानियों का परिचय देते समय हमने दो बातों का विशेषतः उल्लेख किया है। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भागीदारी तथा द्वितीय जैन धर्म/दर्शन/साहित्य/संस्कृति के प्रति उनकी आस्था और उसके विकास के लिए कृत कार्य। बाकी परिचय संक्षेप में दिया है। अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के दर्शन और उनसे साक्षात्कार का सौभाग्य हमें मिला है। अपनी जेल यात्राओं की दर्दभरी कहानियां तथा तात्कालिक परिस्थितियों के सन्दर्भ में उन्होंने जानकारी प्रदान की थी। ऐसे स्थानों पर आधार हेतु साक्षात्कार (सा0) का प्रयोग किया है। अनेक सेनानियों ने हमारे आग्रह करने पर अपना परिचय व चित्र भेजे हैं उनके लिए आधार में यहाँ स्वप्रेषित परिचय (स्व0 प०) का प्रयोग किया है। पहले सेनानियों का परिचय प्रदेशवार दे रहे थे, पर एक सेनानी बाद में दूसरे प्रदेश में चला गया या दो बार अलग-अलग प्रदेशों की जेलों में रहा तो उसे किस प्रदेश का माना जाये? ऐसी अनेक समस्यायें हमारे सामने थीं, अत: अकारादि क्रम से सेनानियों का परिचय दिया जा रहा है। स्वर्गीय (स्व0) शब्द उन्हीं सेनानियों के लिए प्रयुक्त किया है जिनके निधन की निश्चित जानकारी हमें प्राप्त हो गई है। यद्यपि इनमें अनेक ऐसे हैं जिनका निधन हो गया है पर निश्चित सूचना के अभाव में उन्हें स्वर्गीय नहीं लिखा है। मध्य प्रदेश में 1949 में 'भोपाल राज्य विलीनीकरण आन्दोलन' चला। शासन ने उसमें भाग लेने वालों को स्वतंत्रता सेनानी माना है अत: उनका उल्लेख हमने भी इस ग्रन्थ में किया है। साथ ही 'गोवा मुक्ति आन्दोलन' में जेल जाने वालों का उल्लेख भी इस ग्रन्थ में किया गया है। कुछ सेनानियों के निवास स्थान का स्पष्ट उल्लेख न मिल पाने के कारण उनके जिले के नाम से उनका उल्लेख किया गया है। यात्रायें इस कार्य को करने के लिए हमें जबलपुर, दमोह, सागर, छिन्दवाड़ा, रामटेक, कुण्डलपुर, झांसी, ललितपुर, वाराणसी, जयपुर, उदयपुर, ब्यावर, अलवर, सहारनपुर, रुड़की, मेरठ, आगरा, भोपाल, सतना, मुम्बई, देवबन्द, नेमावर, कानपुर कोटा, टीकमगढ़, सिवनी, नैनपुर, केवलारी, डिण्डोरी, दिल्ली आदि अर्धशताधिक स्थानों की यात्रायें करना पड़ी हैं। दिल्ली तो अनेक बार जाना हुआ। इन यात्राओं में बड़े खट्टे-मीठे अनुभव हुए। कुछ स्थानों पर तो हमें लोगों ने 'चंदा उगाहने वाला पंडित' समझा और सौ-दो सौ रुपये देने की पेशकश कर टालना चाहा। अपना प्रयोजन बताने पर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ कि क्या कोई For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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