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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 283 श्री मिठूलाल जैन श्री मिठूलाल नायक पिण्डरई, जिला-मण्डला (म0प्र0) के श्री नरसिंहपुर (म0प्र0) के श्री मिठूलाल नायक मिठूलाल जैन, पुत्र-श्री बंशीलाल का जन्म 1898 का जन्म । जनवरी 1900 ई0 को हुआ। 1920 में ई0 में हुआ । 1930 की क्रान्ति की लहर ने आपके पूज्य बापू के असहयोग हृदय में हलचल मचा दी, आप आजादी के लिए मचल आन्दोलन में आप कूद पड़े उठे और तभी से आन्दोलन में भाग लेने लगे। 1942 फलतः स्कूल छोड़ देना पड़ा। के भारत छोड़ो आन्दोलन में आप तोड़-फोड़ की तीन वर्ष तक आप कांग्रेस कार्यवाही तथा जबलपुर में जुलूस निकालने के कारण के प्रचार एवं संगठनात्मक पकड़े गये फलत: लाठियों से पिटाई हुई और एक कार्यों में लगे रहे। बाद में वर्ष के कठोर कारावास की सजा आपको भोगनी पड़ी। आप विभिन्न पदों पर रहे। आ)-(1) म) प्र) स्व० सै0, भाग-1, पृष्ठ-212 आजादी के बाद म0प्र0 शासन ने स्वतंत्रता संग्राम में (2) जै0 स) रा) 0 स्मरणीय योगदान के लिए प्रशस्ति पत्र प्रदान कर श्री मिठूलाल जैन आपको सम्मानित किया। 10 जनवरी 1995 को सागर (म) प्र0) के श्री मिठूलाल जैन, पुत्र-श्री आपका निधन हो गया। हजारीलाल जैन का जन्म 4 मार्च 1918 को हुआ। आ) (1) प्रशस्ति पत्र (2) श्री मुकेश जैन, द्वारा प्रेपित परिचय । आपने पूज्य गणेश प्रसाद जी वर्णी द्वारा स्थापित सागर के श्री मिश्रीलाल गंगवाल मोराजी विद्यालय में लौकिक तत्कालीन मध्यभारत (अब मध्य प्रदेश) के शिक्षा के साथ ही जैनधर्म की मुख्यमंत्री रहे, 'मालवा के गांधी' नाम से विख्यात, शिक्षा प्राप्त की। 1941 में । अपने स्नेहिल व्यवहार से आपने व्यक्तिगत सत्याग्रह में 'भैय्या जी' उपनाम से प्रसिद्ध, भाग लिया। 1942 में आपने नैतिक मूल्यों के देवदूत, चार माह का कारावास भोगा। आपने लिखा है महावीर ट्रस्ट के पितृपुरुष, कि-'1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में अपने साथी जैन जाति भूषण, स्वयंसेवक श्री मन्नूलाल के साथ मैंने गढ़ाकोटा तक पैदल यात्रा रत्न, जैनवीर, जैनरत्न जैसी की। वहाँ आठ दिन तक बुलेटिन बांटे, परन्तु झण्डा उपाधियों के धारक श्री चढ़ाते हुए गिरफ्तार कर लिया गया। मुझे चार माह मिश्रीलाल गंगवाल, पुत्र श्री बालचंद गंगवाल का की सजा हुई। डेढ माह सागर जेल में बगैर केस के जन्म देवास (म0प्र0) के सोनकच्छ गांव में 7 नजरबंद रहा। जेल में चक्की चलाना..... आदि कार्य अक्टूबर 1902 को हुआ। 5 वर्ष की आयु में आप करना पडते थे। पर्युषण पर्व में जेल में करीब 100 मातविहीन हो गये। की संख्या में जैन बन्धु थे, सभी अलग कमरे में पूजन 11 वर्ष की अल्पवय में भैय्या जी ने विद्यार्थी व शास्त्र स्वाध्याय करते थे।' सहायक समिति के सभापति के रूप में सार्वजनिक आ)- (!) म) प्र) स्व() सै), भाग-2 पृष्ठ-54 (2) आ) दी0, पृष्ठ-71 (3) स्व) पर) सेवा कार्य की दीक्षा ली। 1918 में अ0भा0 हिन्दी For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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