SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 264 स्वतंत्रता संग्राम में जैन होने तक आप इसके अध्यक्ष रहे। करते थे। सागर में दि0 20-1-95 को जब हम आO- (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-149, आपसे मिले, तो आपकी शालीनता/सौजन्यता/स्नेह (2) स्व) प० से गद्गद् हो गये। फरवरी 1997 में आपको तिजारा श्री पं० भुवनेन्द्रकुमार शास्त्री में 31000 रु.) के पुरस्कार से सम्मानित किया गया आगम ग्रन्थों के तलस्पर्शी विद्वान् श्री पं० था, यह राशि भी आपने गरीब छात्रों की सहायतार्थ भुवनेन्द्रकुमार शास्त्री का जन्म 1911 में सेवारा, दे दी थी। आपका निधन सागर में हुआ। जिला-सागर (म0प्र0) में आO- (1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) प0 जै0 50. हुआ। दुर्दैव के कारण जब पृष्ठ-229 (3) स्व0 ५0 (4) सा) आप गर्भ में ही थे तभी श्री भूरेलाल बया पिता जी का देहावसान हो स्वतंत्रता सेनानियों और राजस्थान के रचनात्मक गया, फलत: मामा ने बांदरी राजनीतिक कार्यकर्ताओं में श्री भूरेलाल बया का लाकर आपका पालन पोषण नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। साइमन कमीशन किया और आपने पूज्य वर्णी के विरोध में उठ खड़े हुये श्री बया ने बम्बई में जो के विद्यालय (सागर) में शिक्षा ग्रहण की, बीना नमक सत्याग्रह में भाग लिया और आर्थर रोड तथा में अध्यापन कार्य किया और बाद में लखनऊ, यरवदा जेल में सजायें काटी। बम्बई कांग्रेस के इन्दौर, जबलपुर आदि स्थानों में रहकर जैनधर्म, सक्रिय कार्यकर्ता तथा 'संदेश' मासिक के सम्पादक साहित्य, समाज की सेवा करते रहे। सागर के अपने श्री बया वर्षों गांधी जी के सान्निध्य में रहे और विद्यार्थी जीवन में आपने स्वदेशी प्रचार का महनीय उसके बाद मेवाड़ प्रजामण्डल के आन्दोलनों में कार्य किया। असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के भागीदार बने। आदिवासियों और किसानों के सत्याग्रहों कारण 6 माह का कठोर कारावास आपको सागर में आपने भाग लिया और आजादी के पश्चात जेल में भोगना पड़ा। आपके साथी पं0 वंशीधर जी श्री माणिक्यलाल वर्मा तथा श्री हीरालाल शास्त्री के बीना, श्री नन्हें लाल बुखारिया (जैन), श्री रामलाल साथ मंत्री बने। सराफ आदि थे। आ0- (1) जैन संस्कृति और राजस्थान, पृष्ठ-342 अपनी निर्धनता के कारण आपको अनेक बार (2) रा0 स्व) से0, पृष्ठ-167 एक समय भोजन करना पड़ा. पर विचलित नहीं श्री भेरूलाल वेदमूथा हुए। आपने अपनी धर्मपत्नी के सन्दर्भ में लिखा है श्री भैरूलाल वेदमूथा का जन्म 7 नवम्बर 'सन 1942 में जब मैं गिरफ्तार होकर जेल चला 1910 को ग्राम-चीताखेड़ा, जिला-मन्दसौर (म0प्र0) गया तो उन्होंने महीनों दाल या चावल आदि एक-एक में श्री चन्नीलाल वेदमुथा के घर हुआ। नवीं कक्षा अनाज एक समय खाकर कभी दु:ख का अनुभव उत्तीर्ण कर श्री वेदमथा ने स्कल की पढाई छोड दी नहीं किया, न कभी कोई शिकायत मुझसे की।' और आंदोलनकारियों के साथ मिलकर स्वराज्य लाने धन्य हैं ऐसी गृहिणी। की होड़ में शामिल हो गये। प्रतिदिन स्वाध्याय, सामायिक, चारों अनुयोगों इन्दौर में भारत छोडो आन्दोलन में आप शामिल का अध्ययन/लेखन आप करते थे। प्रवचन भी आप हुए। तराना में भी आपने आन्दोलन किया। होल्कर For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy