SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 316
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 247 आ) (1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-2, पृष्ठ-86 (2) हरिजन उद्धार आन्दोलन में भाग लेने के कारण श्री संतोष सिंघई द्वारा प्रेषित परिचय । 3 बार जेल यात्रा करनी पड़ी। जेल से लौटने के श्री बाबूराम जैन 'कागजी' पश्चात् आप काफी कमजोर हो गये थे, फिर भी आपने गाँव-गाँव की जनता को आजादी के लिये 'कागजी' उपनाम से विख्यात मैनपुरी (उ0प्र0) जगाया। जब आप दूसरी बार जेल गये तब आपकी के श्री बाबूराम जैन का जन्म 1910 में हुआ। 1930 माता जी का स्वर्गवास हो गया। तभी आगने जेल में के स्वदेशी एवं 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में एक कविता 'बेटों को कारावास माँ का स्वर्गवास' आपने जेल-यात्रायें की थी। प्रादेशिक कांग्रेस सेवादल का प्रकाशन कराया था। से जुड़े श्री जैन को भारत सरकार ने सम्मान पत्र होशंगाबाद जिले में खादी प्रचार, शराबबन्दी, प्रदान कर सम्मानित किया था। धार्मिक कार्यों में राष्ट्रीय एकता आदि कार्यों में आपने बढ़-चढ़कर उत्साह से भाग लेने वाले श्री जैन का 1983 में । हिस्सा लिया था। ग्राम सधार केन्द्र बाबई द्वारा निधन हो गया। उत्पादित खादी का आपने प्रचार किया व इस केन्द्र आ)--(1) जी0 स0 वृ० इ०, पृष्ठ-622 (2) स्वतंत्रता के अध्यक्ष रहे। आपके भाई ने भी जेल यात्रा को संनानी श्री रामस्वरूप जी खैरगढ़ द्वारा प्रेषित परिचया थी। बाबई में एक सार्वजनिक वाचनालय भी आप श्री बाबूलाल घी वाले चलाते थे। 1932 में एक वर्ष की सजा व 200 देश प्रेम में अपना उन्नतशील व्यापार छोडकर रुपये जुर्माना तथा 1941 में तीन माह की सजा सत्याग्रही बने श्री बाबलाल जैन का जन्म 1915 में आपको हुई थी। 1942 में भी आप जेल गये। स्थिति ललितपुर (उ0प्र0) में हुआ। आपके पिता का नाम | .अच्छी होने के कारण पेंशन लेने से आपने इंकार श्री धरमदास जैन था। 1942 के आंदोलन में करो। कर दिया था और पुराने रीति-रिवाजों का जमकर या मरो की प्रेरणा पाकर दफा 144 का उल्लंघन विरोध किया था। आपको एक पुत्र हुआ, उसका करने पर आपको | वर्ष की सजा तथा 100/- रु) नाम संगठन रखा, किन्तु कुछ समय बाद संगठन का देहान्त हो गया, जब दूसरा पुत्र हुआ तो उसका नाम गुर्माना हुआ। भी संगठन रखा। 'अ0 भा0 दिगम्बर जैन परिपद्' आO-(1) 30 सा0 रा0 अ0 (2) र0 नी0, पृष्ठ-38 को सफल बनाने में आपका पूरा सहयोग रहा। श्री बाबूलाल जैन डेरिया परिषद् द्वारा आपकी सेवाओं के लिए सम्मान-पत्र पिता मनूलाल एवं माता जानकी बाई की भेंट किया गया था! सन्तान 'बाबूलाल' सचमुच ही बाबुओं के लाल थे। आपकी मृत्यु 2 नवम्बर 1975 को हो गई। उनकी सामाजिक एवं साहित्यिक सेवाओं से समाज मृत्यु से पूर्व आपने 2 अक्टूबर 1971 को आचार्य आज भी गौरवान्वित है। आपका जन्म 3 मार्च रजनीश का सन्यास धारण कर लिया था। आप 1907 को बाबई ग्राम, जिला-होशंगाबाद (म0प्र0) 'तारण बन्धु' के सम्पादक भी रहे थे। आप साहित्यकार में हुआ। विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय आन्दोलन में एवं कवि भी थे। आपकी हर कविता राष्ट्रीयता से भाग लेने से आपका अध्ययन नहीं हो सका। आप ओत-प्रोत रहती थी। अपने समय के जाने-माने नेता थे। राजनीति के आO-(1)म0 प्र0 स्व० सै0, भाग-5, पृष्ठ-334 साथ-साथ धार्मिक क्षेत्र में भी सक्रिय डेरिया जी को (2) स्वा सं0 हो0, पृष्ठ-115 (3) वि0 अ0, पृष्ठ-393 For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy