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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वतंत्रता संग्राम में जैन xxix उपक्रम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रारम्भ 1857 ई0 की जनक्रान्ति से माना जाता है। 1857 से 1947 ई0 के मध्य के 90 वर्षों में न जाने कितने शहीदों ने अपनी शहादत देकर आजादी के वृक्ष को सींचा, न जाने कितने क्रान्तिकारियों ने अपने रक्त से क्रान्तिज्वाला को प्रज्वलित रखा और न जाने कितने स्वातंत्र्य-प्रेमियों ने जेलों की सीखचों में बन्द रहकर दारुण यातनायें सहीं। ऐसे व्यक्तियों के अवदान को भी कम करके नहीं आंका जाना चाहिए जिन्होंने जेल से बाहर रहकर भी स्वतंत्रता के वृक्ष की जड़ों को मजबूती प्रदान की। आजादी के बाद कुछ का ही इतिहास लिखा जा सका। बहुसंख्य देशप्रेमी ऐसे हैं, जिनके सन्दर्भ में कहीं कोई चर्चा तक नहीं है। आजादी के आन्दोलन में भाग लेने वाले प्रत्येक देशप्रेमी की अपनी अलग कहानी है, अलग गाथा है। पुरानी स्मृतियां हैं, दु:खद अनुभव हैं। परिवार की बर्बादी है और शरीर पर आजादी की इबारतें हैं। किन्हीं के चेहरे पर, किन्हीं की पीठ पर, किन्हीं के पेट पर तो किन्हीं के पैरों पर इन इबारतों के निशान हैं। कोई परिवार से छूटा तो कोई शिक्षा से। कितने ही देशप्रेमी कितने ही दिन भूखे पेट रहे, जेल में कंकर-पत्थर मिली रोटियां खाईं वह भी अशुद्ध। किसी ने खाईं तो बीमार पड़ गया, कोई बिना खाये ही दो-दो दिन भूखा रहा। किसी ने प्रतिवाद किया तो कोड़े खाये, किसी को गुनहखाने में डाल दिया गया। पर आजादी के ये दीवाने झुके नहीं। आजादी के आन्दोलन में न जाति-पांति का भेद था न छोटे बड़े का। न गरीब-अमीर की भावना थी न ऊँच-नीच का भाव था। सभी का एक ही लक्ष्य था-'हमें देश को आजाद कराना है, हमें आजादी चाहिए, मर जायेंगे, मिट जायेंगे पर आजादी लेकर ही रहेंगे।' फांसी के फन्दे और गोलियों की बौछार उन्हें भयभीत नहीं कर सकी, जेल की दीवारें उन्हें रोक नहीं सकी, जंजीरें बांध नहीं सकी, डंडे कुचल नहीं सके और परिवार की बर्बादी उन्हें अपने गन्तव्य से विचलित नहीं कर सकी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद स्वतंत्रता आन्दोलन तथा शहीदों/सेनानियों पर बहुत कुछ लिखा गया। स्वतंत्रता संग्राम में विभिन्न जातियों के योगदान पर पृथक्-पृथक् पुस्तकें भी लिखी गईं, परन्तु जैन समाज के योगदान पर कोई पुस्तक नहीं लिखी गई। स्वतंत्रता संग्राम में जैन धर्मावलम्बियों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। अनेक जैन शहीदों ने अपना बलिदान देकर आजादी के मार्ग को प्रशस्त किया तो अनेकों ने जेल की दारुण यातनायें सहीं। अनेक माताओं की गोदें सूनी हो गईं तो अनेक बहिनों के माथे का सिन्दूर पुंछ गया। ऐसे लोगों का भी बहुत योगदान रहा जिन्होंने बाहर से आन्दोलन को सशक्त बनाया, जेल गये व्यक्तियों के परिवारों के भरण-पोषण की व्यवस्था की। जैन समाज धनिक समाज रहा है, अत: जितना आर्थिक अवदान इस समाज ने दिया, शायद ही किसी समाज ने दिया हो। भारत के संविधान निर्माण और आजाद हिन्द फौज में भी जैनों ने महती भूमिका निभाई थी। जैन पत्र-पत्रिकाओं ने भी इस आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। कुछ पत्रों ने अपने आजादी सम्बन्धी विशेषांक निकाले तो कुछ ने स्वदेशी भावना सम्बन्धी विज्ञापन भी प्रकाशित किये थे। अनेक पत्रों में प्रकाशित For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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