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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra xxviii प्रकाशकीय परमपूज्य सराकोद्धारक उपाध्यायरत्न 108 श्री ज्ञानसागर जी महाराज की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से स्थापित प्राच्य श्रमण भारती ने अपनी ग्यारह वर्ष की अल्पवय में ही जैन साहित्य-संस्कृतिइतिहास - दर्शन - पुरातत्त्व - कथा सम्बन्धी लगभग अस्सी पुस्तकों का प्रकाशन कर जैन साहित्य के विकास में महनीय योगदान दिया है। आज कम्प्यूटर और इन्टरनेट के युग में भी पुस्तकों की महत्ता कम करके नहीं आंकी जानी चाहिए। पूज्य उपाध्याय श्री की सदैव प्रेरणा रहती है कि प्राच्य श्रमण भारती को जैन आगम के गम्भीर विषयों के साथ-साथ लोकोपयोगी सरल साहित्य का भी प्रकाशन करना चाहिए। इतना ही नहीं बाल साहित्य के प्रकाशन की भी उनकी प्रेरणा रहती है। हम इस कसौटी पर कितने खरे उतरे हैं, इसका निर्णय आप जैसे गुणानुरागी पाठकों पर छोड़ते हैं। www.kobatirth.org विद्वदनुरागी और साहित्य पारखी पूज्य उपाध्याय श्री के पास जब हम 'स्वतंत्रता संग्राम में जैन' पुस्तक की पाण्डुलिपि लेकर गये तो उन्होंने इसके प्रकाशन हेतु अपना वरद् आशीर्वाद हमें दिया, तदनुरूप यह पुस्तक आपके कर-कमलों में देते हुए हमें असीम आनन्द की अनुभूति हो रही है। योगेश कुमार जैन भारतीय साहित्य और संस्कृति के विकास में जैन समाज ने अपना अनल्प योगदान दिया है। देश की समृद्धि में हमारा समाज सदैव अग्रिम पांक्तेय रहा है। यह बात अलग है कि उसका जितना मूल्यांकन होना चाहिए था, उतना हुआ नहीं। राष्ट्रीय चेतना में यह समाज सदैव अग्रणी रहा है। राष्ट्रीय आन्दोलन में भी हमारे समाज ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। कुछ फांसी के फंदे पर झूले तो कुछ को गोलियों का शिकार होना पड़ा। कुछ ने जेल की कठोर यातनायें सहीं तो कुछ परिवार- विहीन हो गये। कुछ की लिखी कवितायें या पुस्तकें जब्त कर ली गईं तो कुछ पत्रिकाओं की जमानतें जब्त हो गईं। महिलायें भी इस काम में पीछे नहीं रहीं। अनेक लोगों ने बाहर से आन्दोलन को गतिमान बनाये रखा। इस विषय पर अनेक समाजों के इतिहास तो सामने आये किन्तु जैन समाज की स्वतंत्रता आन्दोलन में क्या भूमिका रही इस विषय पर कोई प्रामाणिक पुस्तक नहीं आई थी। डॉ॰ कपूरचंद और डॉ० ज्योति जैन ने श्रम - समय और बहु अर्थ साध्य प्रस्तुत पुस्तक लिखकर इस कमी को पूरा किया है। डाक्टरद्वय की योजनानुसार पुस्तक तीन खण्डों में लिखी जानी है, जिसका यह प्रथम खण्ड है, हम आशा करते हैं कि शेष दो खण्ड भी शीघ्र प्रकाशित होंगे। अध्यक्ष लेखक दम्पति के हम आभारी हैं, जिन्होंने हमारी संस्था को अपनी पुस्तक के प्रकाशन की स्वीकृति प्रदान की है। श्रीमान् सुमत प्रसाद जैन, बजाज बैटरी, आगरा, श्री श्रीचंद जैन, शील सेफ इण्डस्ट्रीज़, मेरठ एवं ब्र० महावीरी देवी पाटौदी, साढम (बोकारो) ने आर्थिक सहयोग देकर इस कार्य को सुगम बनाया है। हम आशा करते हैं कि इनका ऐसा ही सहयोग प्राच्य श्रमण भारती को सदैव मिलता रहेगा। मनोहर लाल जी ने बड़े ही मनोयोग पूर्वक इसका मुद्रण किया है। संस्था के सभी पदाधिकारियों का आभार व्यक्त करता हूँ, जिनका अमूल्य सहयोग हमें सदैव मिलता रहता है। - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राच्य श्रमण भारती स्वतंत्रता संग्राम में जैन For Private And Personal Use Only रविन्द्र कुमार जैन (नावले वाले ) मंत्री प्राच्य श्रमण भारती -
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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