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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 224 स्वतंत्रता संग्राम में जैन थे। विद्यार्थी कांग्रेस ने इस इसी ग्रन्थ में अन्यत्र देखें) और स्वतंत्रता सेनानी आन्दोलन में प्रजामंडल के श्रीमती सरदारबाई लूणिया के आप पुत्र थे। मां एवं तत्त्वावधान में पूर्ण रूप से पिता के साथ 1930-32 के सत्याग्रह आन्दोलन में भाग लिया, रामगढ़ भी इस आपने जेल यात्रा की। आन्दोलन का केन्द्र बना। आo-(1) जै) स) रा0 अ) इसमें भीषण लाठीचार्ज हुआ श्री प्रभाचंद जैन था। 15-20 व्यक्तियों को __ डिण्डोरी, जिला-मण्डला (म0प्र0) के श्री चोटें आई थीं, अनेकों के हाथ-पांव टूट गये व सर । - प्रभाचंद जैन, पुत्र-श्री हरचंद का जन्म 4 अगस्त फट गये थे। इस आन्दोलन में श्री प्रकाशचद जी भी 1920 को केवलारी (सिवनी) म0प्र0 में हुआ। बाद जेल गये थे। राज्य सरकार के हारने के बाद सभी । ___ में आप डिण्डोरी आ गए। 17 वर्ष की उम्र में ही कार्यकर्ताओं के साथ आप छोड दिये गये थे। आप आजादी के दीवाने बन गये थे। 1942 के आ0-(1) स्वतंत्रता सेनानी श्री महावीर प्रसाद जैन द्वारा प्रेषित परिचय (पत्र 27-12-94)। (2) अनेक प्रमाणपत्र (3) 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में आपको 6 माह की सजा दैनिक भास्कर, अलवर प्लस, दि0 9-8-1997 हुई। आपको माफी मांगने के लिए डराया, धमकाया श्री प्रकाशचंद जैन गया। आपने कहा-(अंग्रेजों) 'तुम मेरा कुछ नहीं सहारनपुर (उ0प्र0) के श्री प्रकाशचंद जैन बिगाड़ सकते, नौकरशाही का अन्त करके ही रहूंगा।' स्वभाव से माल और निष्कपट दंगान पर अंग्रेजी आपने माफी नहीं मांगी। 21-8-42 से 19-2-43 शासन ने उन्हें भी नहीं बख्शा, जेल की दारुण त तक आप मण्डला जेल में रहे। आO-(1)म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-1, पृष्ठ-209 यातनाएं उन्हें भी सहनी पडी। श्री जैन के सन्दर्भ में । (2) जै0 स0 रा) अ0 प्रसिद्ध साहित्यकार और स्वाधीनता सेनानी श्री कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' ने लिखा है श्री प्रभाषचंद जैन 'पतला-दुबला वह तरुण 1942 के झकोरे में कांग्रेस श्री प्रभाषचंद जैन 1930 से कटनी (जबलपुर) में आया। पहले-पहल जेल में ही मैंने उसे देखा। म0प्र0 में स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हुये। आपने वह बोलता तो बोलता ही रहता और चप होकर पेड जंगल सत्याग्रह में भाग लिया तथा 10 माह का के नीचे जा बैठता तो वहीं बैठा रहता। उसमें शक्ति कारावास व 50 रुपये का अर्थदंड भोगा। चाहे कम थी, पर इरादे बुलन्द थे। दो दिन के बुखार आ0-(1) म0 प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-71 में वह हमसे हमेशा के लिए अलग हो गया।' श्री प्रेमचंद 'उस्ताद' आO-(1) जै0 स0 रा0 अ0 (2) उ0 प्र0 जै) ध), पृष्ठ 86 दमोह (म0प्र0) में 'उस्ताद' नाम से विख्यात सवाई सिंघई श्री प्रेमचंद, जबलपुर निवासी स०सि० श्री प्रतापसिंह लूणिया श्री पन्नालाल के सुपुत्र थे। आपका जन्म 1904 ई0 राष्ट्रीय आन्दोलन में अनेक सेनानी ऐसे रहे, जो में हुआ था। आपकी जबलपुर में हौजरी की दो दुकानें में सकुटुम्ब जेल गये। ऐसे लोगों में श्री प्रतापसिंह थीं। दमोह के श्री सुखलाल चौधरी की इकलौती बेटी लुणिया का नाम अग्रगण्य है। अजमेर के प्रसिद्ध से विवाह होने के कारण आपने दमोह में रहना प्रारम्भ स्वतंत्रता सेनानी श्री जीतमल लूणिया (इनका परिचय कर दिया। आपको बन्दक चलाने तथा फोटोग्राफी का For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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