SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 229
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 160 स्वतंत्रता संग्राम में जैन सदस्य बने। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भी भाषा-शास्त्री भी थे। राजपूताना निवासी होने से आपने भाग लिया एवं जेल में रहे। उनकी मातृभाषा हिन्दी थी पर वह गुजराती, मराठी, आ) (1) म0 प्र0 स्व0 सैरा, भाग-4, पृ0-262, बंगाली, तामिल, संस्कृत और अंग्रेजी भी जानते थे। (2) जै) इ.), पृ) 85. (i) जै) । युर), पृ()-228 नई भाषा या नया काम हाथ में लेने की उनकी जैसी श्री छोटेलाल जैन शक्ति मैंने कहीं और नहीं देखी। आश्रम (साबरमती) 'दिल्ली षडयंत्र केस' अपरनाम 'हाडिॉस बम के स्थापना काल से ही छोटेलाल ने उससे अपना केस' को तो सभी जानते हैं। पर इस केस के एक था। उनके शब्दकोष में थकान' अभियक्त रहे श्री छोटेलाल जैन को शायद ही कोई के लिये स्थान नहीं था....... ग्राम-उद्योग-संघ स्थापित जानता हो। छोटेलाल जी का जन्म 1892 ई) के हुआ तो घानी का काम दाखिल करने वाले छोटेलाल, आसपास जयपुर के भांवासा गोत्रीय श्री हकमचंद जैन धान दलने वाले छोटेलाल.............उन्हें हलके प्रकार के तृतीय पुत्र के रूप में हुआ। इनके बड़े भाइयों का के मियादी बुखार ने पकड़ लिया। यह उनके प्राणों नाम आनन्दीलाल तथा नानूलाल था। छोटेलाल जी का का ग्राहक निकला। मालूम होता है, उन्हें छ: सात विवाह मास्टर मोतीलाल सेठी की पुत्री से हुआ। बचपन दिन अपनी सेवा कराना भी असह्य लगा। अतः 31 में ही पत्नी का देहान्त हो गया। छोटेलाल जी ने दूसरा अगस्त, मंगलवार की रात को ग्यारह और दो बजे विवाह करने से इंकार कर दिया। देश के नवयवक के बीच में सब को सोता छोड़कर वह मगनवाडी के उस समय विदेशी सत्ता को आतंक एवं सशस्त्र क्रान्ति कुएं में कूद पड़े। आज पहली तारीख को शाम के द्वारा उलटने के स्वप्न देखा करते थे. छोटेलाल भी चार बजे लाश हाथ में आई। मैं सेगांव में बैठा रात ऐसे नवयुवकों में एक थे। उन्होंने जेल की यातनायें के आठ बजे यह लिख रहा हूँ। छोटेलाल की देह सहीं, अनेक युवकों को क्रान्ति की दीक्षा दी तथा का इस समय वर्धा में अग्नि-दाह हो रहा होगा। क्रान्तिकारी दलों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। इस आत्मघात के लिये छोटेलाल को दोष देने छोटेलाल जी कान्तिकारी श्री अर्जन लाल सेठी की मुझे में हिम्मत नहीं। उनका नाम 1915 के के निकटवर्ती साथियों में थे। वे राजस्थान के तपस्वी दिल्ली षडयंत्र-केस में आया था. पर उसमें वह बरी जनसेवक श्री रामनारायण चौधरी के सहपाठी थे। श्री हो गये थे। किसी आफिसर को मार कर खुद फांसी जन सावरमती आश्रम में कुछ साल रहकर महात्मा क तख्त पर चढ़ने का स्वप्न वह उन दिनों देखते गांधी के साथ वर्धा चले गये और बाप जी के बदत थे।.............. अपनी तीव्र हिंसक बुद्धि को उन्होंने निकट सम्पर्क में रहे। कुछ दिनों तक आपको महादेव बदल दिया और अहिंसा के पुजारी बन गये।........ भाई के साथ-साथ बापू के निजी मन्त्री का कार्य .......... उन्हें इस बीमारी में अपनी सेवा लेना करने का अवसर भी प्राप्त हुआ। वर्धा में ही आप असह्य मालूम दिया और गहरी पैठी हुई हिंसा को बीमार हो गये। आपने आजन्म देश सेवा की। खुद अपनी बलि दे दी................ छोटेलाल मुझ आपके निधन पर पूज्य बापू ने 'हरिजन सेवक' अपना देनदार बना कर 45 वर्ष की उम्र में चल (1-9-1937) में लिखा है बसे। उनसे मैं अनेक आशायें रखता था।" "छोटेलाल की मूक सेवा का वर्णन भाषा वद्ध आ0- (1) राजस्थानी आजादी के दीवाने, पू) /3-1 तथा बी/117-118 (2) श्री ज्ञानचंद खिन्दूका, जयपुर का 26/10/2001 नहीं हो सकता। ऐसा करना मेरी शक्ति से बाहर है।. का पत्र तथा 'सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय' से पूज्य बापू द्वारा 'हरिजन ............... उनकी बुद्धि तीव्र थी।.............. वे सेवक' में लिखी टिप्पणी For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy