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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 132 स्वतंत्रता संग्राम में जैन कारण पहचानते थे। मुझे मेरी मर्जी से साबरमती के प्रति जाग्रति पैदा हो गई। जन आक्रोश के समक्ष जेल भेजकर 'ए' श्रेणी में रखा। जिन 18 'ए' श्रेणी झाबुआ नरेश ने घुटने टेक दिए। लोकप्रिय मंत्रिमंडल कैदियों के साथ रहा, उनमें पुरुषोत्तम गणेश मावलंकर की घोषणा करने को उन्हें बाध्य होना पड़ा। भी थे। तब अच्युत पटवर्धन, डॉ केसकर, मोहनलाल 18-1-1948 को मंत्रियों ने शपथ ग्रहण की, कुसुमकान्त गौतम, अरुणा आसफ अली पर लाखों के इनाम थे। जैन भी उनमें एक थे। श्री जैन उस समय भारत में इन सबसे मेरा परिचय हुआ। डॉ केसकर ने इच्छा सबसे कम उम्र के केबिनेट मंत्री थे। जाहिर की कि पं नेहरू से मुलाकात की व्यवस्था मई 1948 में मध्य भारत राज्य का गठन हुआ, कराइए। उन्होंने वेशभूषा बदली, अब वे प्रो0 मेहता हो जिसमें इन्दौर, ग्वालियर के अतिरिक्त मालवा के गए। मुंबई से उन्हें लेकर मैं उदयपुर पहुंचा, छोटे-बड़े 20 रजवाड़ों का विलीनीकरण किया डी0एफ0ओ0 मुरड़िया के बंगले में प्रो० मेहता के गया। लीलाधर जोशी मध्य भारत के प्रथम रूप में ठहराया। डॉ) केसकर की लिखी चिट्ठी प्रधानमंत्री चुने गए। श्री जोशी ने कुसुमकांत जैन को लेकर मैं उदयपुर में सभा मंच पर पहुंचा, जैसे-तैसे अपने मंत्रिमंडल में केबिनेट मंत्री नियुक्त किया। माहनलाल सुखाड़िया ने नेहरू तक डॉ0 केसकर की श्री कालूराम जी विरुल द्वारा संविधान सभा से चिट्ठी पहुंचाई, वे तुरंत नीचे आए। योजना मुताबिक इस्तीफा दिये जाने पर छोटी रियासतें जैसे झाबुआ, में लक्ष्मीविलास गेस्ट हाउस पर किराए की कार बडवानी, धार, रतलाम आदि ग्रुप के प्रतिनिधि-रूप लेकर पहुंचा। नेहरू आए, बैठे। मुरड़िया दंग रह गए में श्री कुसुमकान्त जैन का निर्वाचन भारतीय संविधान अपने यहाँ नेहरू को देखकर। नेहरू-केसकर मुलाकात निर्मातृ परिषद् के लिए हुआ। उन्होंने भारतीय संविध चालीस मिनट चली, मैं फिर उसी तरह नेहरू को न पर हस्ताक्षर किये तथा 26 जनवरी 1950 तक इस छोड़ आया।' महान् संविधान निर्मातृ संस्था के सदस्य रहकर पुनः अगस्त क्रान्ति के दौरान श्री जैन भूमिगत हो अपने प्रदेश में लौट आये। श्री जैन संविधान निर्मातृ गए और भेष बदलकर प्रचार सामग्री पहुंचाते रहे, बाद परिषद् के सदस्य के अलावा भारतीय संसद में गिरफ्तार होना उचित समझा। अतः जैसे ही आप (प्राविजनल) के भी सदस्य रहे और उनकी मध्य मार्च 43 में दोहद रेलवे स्टेशन पर प्रगट हुए, भारत भारत विधानसभा की सदस्यता भी यथावत् रही। रक्षा नियम के अन्तर्गत नजरबंद कर साबरमती जेल यह समय श्री जैन के चरम राजनैतिक उत्कर्ष भेज दिया गया, वहां दादा साहब मावलंकर आदि का समय था। बाबू राजेन्द्र प्रसाद, पंडित नेहरू, नेताओं से उनका संपर्क हुआ। तीन माह के बाद जैसे सरदार पटेल आदि महान् नेताओं के साथ भारतीय ही जेल से रिहाई हुई, बम्बई शासन द्वारा संविधान पर अपने हस्ताक्षर कर श्री जैन इतिहास में उनको पंचमहाल जिले में प्रवेश न करने की आज्ञा अमर हो गये। मिनिस्टर, सांसद व विधायक तो हजारों थमा दी गई। हुए और प्रजातंत्र में होते रहेंगे लेकिन देश का प्रथम 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ तो संविधान बनाने का गौरव जिन व्यक्तियों को प्राप्त एक माह बाद ही श्री जैन झाबुआ लौट आए। यहां हुआ, उन महान् संविधान निर्माताओं की विशिष्ट आकर उन्होंने उत्तरदायी शासन की प्राप्ति का आन्दोलन पंक्ति में स्थापित होने का महान् गौरव थांदला के इस छेड़ दिया और अल्पकाल में ही जनता एवं आदिवासियों युवक स्वतंत्रता सेनानी को सिर्फ 28 वर्ष की अल्प में एसी आग फंकी कि उनके मन में अपने अधिकारों आयु में मिला, यह श्री जैन के जीवन की महान् For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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