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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 131 आप जब 'साहित्यरत्न' का अध्ययन करने तब वे म0 भा० देशी राज्य लोक परिषद के इन्दौर पहुंचे तो वहां मजदूर संघ के माध्यम से ट्रेड अध्यक्ष थे। बापू ने मुझे व्यक्तिगत सत्याग्रह की यूनियन का कार्य प्रारम्भ किया। प्रजामण्डल नेताओं अनुमति तो नहीं दी लेकिन पंचमहाल में से भी सम्पर्क हुआ। होल्कर राज्य में उन दिनों सत्याग्रहियों की सभा की आवश्यक तैयारियां करने सभाबंदी का आदेश जारी था। इसके विरोध में श्री के लिए वालिंटियर घोषित कर दिया। सभा से हजारीलाल जड़िया ने आमरण अनशन प्रारम्भ किया, पूर्व मैं स्थल पर झाडू लगाता, दरी बिछवाता, उनके आन्दोलन को गति देने हेतु श्री जैन ने शहर मंच एवं माइक व्यवस्था देखता। लोग मुझे सीमा के बाहर दशहरा मैदान पर आयोजित सभाओं में देखने आते कि बाप ने किसे वालिटियर नियक्तकिया। हिस्सेदारी की, फलतः आपको राज्य सीमा से निर्वासित इंदौर, झाबुआ, देवास, रतलाम आदि रियासतों कर दिया गया। आप इन्दौर से उज्जैन तथा वहां से में मेरा प्रवेश भी प्रतिबंधित था, इसलिए मैं ट्रेन से इन अजमेर पहुंचे। वहाँ श्री जयनारायण व्यास, शहरों के स्टेशन पर पहुंचता। स्थानीय साथी आकर माणिक्यलाल वर्मा आदि क्रान्तिकारी नेताओं के मिल लेते, प्रचार सामग्री उनके सुपुर्द कर अगले सम्पर्क में आए। उनके निर्देशानुसार राजपूताना तथा स्टेशन के लिए रवाना हो जाता। बीमा एजेंट रहते हुए पड़ोसी मालवा के छोटे राज्यों में आपने कांग्रेस व मैं कोट-पैंट पहने रहता, इसलिए किसी को मुझ पर प्रजामण्डलों का प्रचार-कार्य किया। शौकत उस्मानी शक भी नहीं होता। जिसे अंग्रेज हुकूमत आपत्तिजनक तथा प्रसिद्ध क्रान्तिकारी एम0 एन0 राय के सम्पर्क सामग्री मानती थी, उस सारे प्रचार साहित्य का बंडल में भी आप आए। भी मैं ट्रेन के दूसरे डिब्बे में छोड़ देता था, जिससे 1939 40 में आप गृहनगर उज्जैन लौट आए यदि मुझे पकड़ भी लिया जाए तो पुलिस मेरे पास से और मजदूर संगठन की गतिविधियां प्रारम्भ की। कोई आपत्तिजनक सामग्री बरामद नहीं कर पाए। पुलिस तलाशी में श्री जैन के घर से कम्युनिस्ट सितंबर 1940 से जनवरी 41 तक इसी तरह कार्य साहित्य बरामद हुआ, अतः शान्ति भंग तथा युद्ध किया। प्रयासों में बाधा डालने के अपराध में उन्हें छ: माह गुजराती समझ और बोल लेता था, इसलिए की सजा मिली और जेल में बंद कर दिया गया। जेल 1942 में मुंबई से प्रकाशित 'वंदेमातरम्' (गुजराती) से छूटने पर आप दोहद पहुंचे और इसी स्थान को समाचार-पत्र में, 250 रु0 महीने की नौकरी मिल गई। अपना कार्यक्षेत्र चुना। 9 अगस्त 42 को बापू ने भारत छोड़ो, करो-मरो का __ दैनिक भास्कर, इन्दौर, 15 अगस्त 1997 को आह्वान किया। गांधीजी की गिरफ्तारी के बाद सभी दिये एक साक्षात्कार में आपने कहा है- 'आजादी सत्याग्रही भूमिगत हो गए। मुझे बम ले जाने, आगजनी आंदोलन में मेरी भी दिली इच्छा थी कि बापू मुझे करने के निर्देश मिले। मैंने स्पष्ट इंकार कर दिया कि व्यक्तिगत सत्याग्रह की अनुमति दें। इंदौर, झाबुआ जैनी हूं, ऐसा काम नहीं करूंगा। अन्ना सा सहस्त्रबुद्धे, आदि देशी रियासत होने के कारण मैं पंचमहाल बै0 पुरुषोत्तम त्रिकमदास, बै0 गूजर, सेठ शूरजी (गुजरात) में सक्रिय था। वहां के कांग्रेस जिला बल्लभदास ये चारों प्रचार सामग्री तैयार करते, उसे अध्यक्ष माणकलाल गांधी ने स्पष्ट इंकार कर दिया विभिन्न क्षेत्रों में मैं उक्त तरीके से पहुंचाता रहा। कि तुम सत्याग्रह नहीं कर सकते। मैं वर्धा में 21 वर्ष की उम्र थी, तब मैंने तय किया कि अब आचार्य नरेन्द्र देव की मदद से गांधीजी से मिला। गिरफ्तारी दूंगा। गोधरा कलेक्टर मुझे पत्रकार होने के For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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