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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 106 -स्वतंत्रता संग्राम में जैन गोयलीय जी ने संस्मरणात्मक शैली में जो लिखा है, 1916-17 में अम्बाला में जैन वेदी प्रतिष्ठा वह सेठी जी के पूर्ण व्यक्तित्व को प्रकट करने में थी। बाबू अजित प्रसाद लखनऊ वाले वहाँ पधारे थे, सक्षम नहीं है। फिर भी वह सामग्री प्रामाणिक है वे सेठी के छुटकारे के लिये प्रयत्न कर रहे थे, और आगे सेठी जी के जीवन के सन्दर्भ में हम जो पाण्डाल में उनका प्रभावशाली भाषण हुआ। आर्थिक घटनाएं दे रहे हैं उनका प्रमुख आधार गोयलीय जी सहायतार्थ उन्होंने सेठी जी के छपे चित्र बेचे, जनता की उक्त पुस्तक ही है। यद्यपि अन्य जगहों से ने अपनी शक्ति के अनुसार मुल्य देकर उन्हें खरीदा जितना सम्भव हुआ, घटनाओं की प्रामाणिकता जांच था। जब 'सेठी जी को मुक्त करो' आन्दोलन प्रबल ली गई है। हमारे जैसे अल्पज्ञ उनके व्यक्तित्व के हुआ तो कुछ शर्तों के साथ भारत सरकार उन्हें साथ न्याय कर सकेंगे? इसमें सन्देह है फिर भी जो छोड़ने को तैयार हो गई किन्तु सेठी जी ने सशर्त सामने है, उसी आधार पर लिखा जा रहा है। यहाँ रिहा होना ठकरा दिया। केवल राजनैतिक घटनाओं का ही उल्लेख है। 1912 में चांदनी चौक में जब लार्ड हार्डिंग पर । सेठी जी राजनैतिक चिन्तन में इतने तल्लीन बम फेंका गया तो दिल्ली के मास्टर अमीरचंद को का रहते थे कि उन्हें मुश्किल से 2-1 घण्टे ही नींद उनके घर में ही नजरबंद कर दिया गया, उनके मकान 11 आती थी। उन्हें तपोमूर्ति कहा जाय तो कोई आश्चर्य के आसपास छदम वेष में पलिस लगा दी गई ताकि __ की बात नहीं। अन्य क्रांतिकारियों को भी पकडा जा सके। सेठी जी अमीरचंद जी से मिलने दिल्ली आये। स्टेशन पर ही अमीरचंद जी की नजरबंदी की सूचना गप्तचरों से उन्हें सेठी जी जिनदर्शन किये बगैर भोजन नहीं मिल गई। पर मिलना आवश्यक था। सेठी जी साहूकार करते थे, वैलूर जेल में जिनदर्शन की सुविधा न होने के वेष में अमीर चंद जी के दरवाजे पर पहुँचे और के कारण उन्होंने भोजन का त्याग कर दिया और वैसी ही आवाज लगाने लगे जैसी साहूकार कर्जदार इतने दृढ़ रहे कि 70 दिन तक निराहार रहे। अन्त को लगाता है। पुलिस ने पूछा तो सेठी जी ने कहा में सरकार को झुकना पड़ा और प्रसिद्ध शिक्षाविद् - 'हजरत पर एक डेढ़ वर्ष से रुपया पावना है, लेकिन तथा स्वतंत्रता सेनानी महात्मा भगवानदीन ने जेल में देने का नाम नहीं लेते. रोजाना कोई न कोई घिस्सा जिन प्रतिबिम्ब विराजमान कराया, तब उनका उपवास देते रहते हैं। मैं आज नावा वसूल करके ही जाऊँगा।' समाप्त हुआ। इस सन्दर्भ में 'वीर निकलंक' (अक्टू) पुलिस ने और भी शह दे दी- 'बड़ा बदमाश है, जो 1993) को दिये अपने एक साक्षात्कार में सेठी जी लिया जा सके वसल कर लो। इसे तो फांसी लगने की पुत्री 80वर्षीया सरस्वती देवी जी ने बताया था वाली है।' कि-'हम मूर्ति जयपुर से ले गये थे।' भारत के मास्टर जी ने सेठी जी की आवाज पहचान राजनैतिक बन्दियों में यह प्रथम उदाहरण था, इसलिए ली, वे ऊपर से ही बोले- 'तुम नीचे से ही शोर क्यों भारतीय नेताओं ने 'भारत का जिन्दा मेकस्वनी' मचा रहे हो, भले आदमियों की तरह चाहो तो ऊपर कहकर उनका अभिनन्दन किया था। आकर बात कर सकते हो'। दोनों भले आदमियों ने जो विचार विमर्श करना था कर लिया। जयपुर अढ़ाई शती समारोह (1978) के अवसर पर प्रकाशित 'जयपुर- दर्शन' ग्रन्थ (पृष्ठ ।10) For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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