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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 105 है, और जिसमें भारत के वाइसराय लार्ड हार्डिंग पर मोर्चा लेने का साहस सेठी जी ने ही किया था, सेठी बम फेंका गया था, के मुख्य सूत्रधारों में आपका जी जितने क्रान्तिकारी थे, उससे कहीं अधिक धार्मिक नाम था। और दार्शनिक भी थे। उनका अंतिम भाषण 13 1914 में सेठी जी को जयपुर में नजरबन्द अगस्त 1939 को 'जैनिज्म तथा सोशलिज्म' पर कर दिया गया। जब उनकी नजरबंदी से सारे भारत ब्यावर में हुआ था। उन्होंने जैनधर्म पर अनेक लेख में तहलका मचा तो उन्हें मद्रास प्रेसीडेन्सी के वैलूर एवं पुस्तकें लिखीं। जिनमें 'महेन्द्र कुमार नाटक', जेल में भेज दिया गया, जहाँ जिनदर्शन न होने पर 'मदन पराजय नाटक', पारस यज्ञ पूजा' आदि अति वे 70 दिन, एक मत के अनुसार 56 दिन निराहार प्रसिद्ध रही हैं। अनेक स्तोत्रों आदि की भी रचनायें रहे। 1920 में आप जेल से छुटे और अजमेर को उन्होंने की थीं। वे अपने अन्तिम समय तक धर्म अपना कार्यक्षेत्र बनाया, वहीं से कांग्रेसी तथा क्रान्तिकारी और राष्ट्रहित की साधना करते रहे। गतिविधियों का संचालन किया। 1921 के सविनय सेठी जी अपनी स्वरचित तुकबन्दी को प्रायः अवज्ञा आन्दोलन में अजमेर में हिन्दू मुस्लिम एकता गाया करते थे, जिसमें उनका समूचा क्रान्तिदर्शी का अभतपर्व उदाहरण प्रस्तत किया। प्रसिद्ध क्रान्तिकारी जीवन-दर्शन समाया हुआ हैचन्द्रशेखर को अजमेर में सेठी जी ने छिपाया था कब आयेगा वह दिन की बनूं साधू बिहारी। (घटना का विशेष विवरण आगे है)। दुनियां में कोई चीज मुझे थिर नहीं पाती। 5 जुलाई 1934 को स्वयं महात्मा गांधी अजमेर और आयु मेरी यूं ही तो बीतती जाती।। में सेठी जी के घर गये। सितम्बर 1934 में आप मस्तक पै खड़ी मौत वह सब ही को है आती। राजपूताना व मध्यभारत प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के राजा हो महाराणा, या हो रंक भिखारी।। प्रान्तपति चुने गये। कब................। - 1935 में प्रान्तीय झगड़ों से बचने की दृष्टि से सर्वस्व लगाके मैं करूँ देश की सेवा। आपने अफ्रीका जाने का विचार किया, किन्तु पासपोर्ट घर-घर में जाके मैं रखूगा ज्ञान का मेवा।। बनने के बाद भी जा नहीं सके। 1936 में मिल दु:खों का सभी जीवों का हो जायेगा छेवा। मजदूरों की हड़ताल के अवसर पर आप पुनः अति सक्रिय राजनीति में आये पर अपनी असंतुष्ट वृत्ति में भारत में न देखूगा कोई मूर्ख-अनारी। मानसिक असन्तुलन के कारण मजदूरों का अधिक कब...................। हित न कर सके। सेठी जी स्वयं लेखक थे, राजनीति एवं धर्म 1937 में खण्डवा (म0प्र0) में हुई जैन परिषद् पर अनेक लेख उन्होंने लिखे पर अपने बारे में कहीं के सम्मेलन में आप सम्मिलित हुए थे। इस सन्दर्भ कुछ नहीं लिखा। हमें सेठी जी के जीवन के सन्दर्भ में जैनमित्र (1938 ई0 वैशाख वदी 13) लिखता में जो सामग्री प्राप्त हुई है उसमें श्री अयोध्या प्रसाद है- '..... आपका भाषण बहुत तात्त्विक व मर्मभेदी 'गोयलीय' द्वारा लिखित 'जैन जागरण के अग्रदूत' होता था। आप पं) गोपालदास के समय के वक्ता प्रमुख है। गोयलीय जी सेठी के साथ काफी समय हैं। आप गोम्मटसार व समयसार के मर्मी हैं।' 1939 रहे थे। उन्होंने सेठी जी का जीवन-चरित उनसे में रतरे नैरीपन के साथ कांग्रेस कमान्ड के विरुद्ध पूछकर लिखना भी चाहा, पर सफल नहीं हुए। For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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