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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 88 1 भूकम्प, आसाम की बाढ़ आन्ध्र के भूकम्प आदि में भी आपने अपनी ओर से हजारों रुपया देकर सहायता की थी। सेठ अचल सिंह ने ग्रामों के उत्थान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1928 में आपने 'अचल ग्राम सेवा संघ' की स्थापना की थी, जिसने अपनी शैक्षणिक एवं स्वास्थ्य सेवाओं से ग्रामों में क्रान्ति कर दी थी। 1935 में आपने एक लाख रुपये का 'अचल ट्रस्ट' बनाया था, जिससे वाचनालय, पुस्तकालय आदि अनेक गतिविधियों का संचालन होता था । पशुकल्याण के क्षेत्र में सेठ जी का योगदान अविस्मरणीय है। साम्प्रदायिक सद्भावना बनाने में आप सदैव अग्रणी रहे। 1931 में हुए दंगे में आप पर ईंट पत्थरों से हमले हुए, सिर में घातक चोटें आई फिर भी आप अडिग सेनानी की भांति डटे रहे। सेठ जी लोकहित व जनसेवा के कार्यों के लिए धन एकत्र करने का कार्य अपने हाथ में लेते थे और लोग भी उन्हें मुक्त हस्त से दान देते थे। सेठ जी की धन संग्रह करने की क्षमता देखकर श्री कृष्णदत्त पालीवाल उन्हें आगरा का 'जमना लाल बजाज' कहकर सम्बोधित करते थे। सेठ अचल सिंह के मन-मस्तिष्क को जो बात सबसे अधिक चिन्तित करती रही वह थी व्यक्ति-समाज और देश में उत्तरोत्तर बढ़ती हुई अनैतिकता और नैतिक मूल्यों का तेजी से होता ह्रास। उनका मानना था कि जब तक हमारे राष्ट्रीय चरित्र का उत्थान नहीं होगा तब तक भारत की उन्नति नहीं हो सकती । उन्होंने समाज से भ्रष्टाचार, तस्करी, मिलावट, लूट एवं अनैतिक आचार आदि को मिटाने के लिए आगरा से ही एक प्रयोग शुरू किया, इसके लिए उन्होंने 1964 में 'नैतिक नागरिक संघ' की स्थापना की थी। आगे चलकर 1978 में उन्होंने घोषणा की थी कि 'आगरा जनपद में उन नागरिकों का सार्वजनिक Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वतंत्रता संग्राम में जैन अभिनन्दन किया जाय जो किसी भी क्षेत्र में नैतिक मूल्यों व सदाचार पर आधारित साफ सुथरा जीवन व्यतीत कर रहे हों। ' पं() जवाहर लाल नेहरू से आपका घनिष्ठ संबंध था। 1929 में पं0 मोतीलाल नेहरू एक मुकदमें के संदर्भ में आगरा आये । सेठ जी उनसे मिलने गये। पं0 जी ने हंसते हुए कहा- 'अब आपको अपनी सेठाई छोड़कर देश के लिए कष्ट उठाने होंगे', सेठ जी ने तत्काल उत्तर दिया 'मैं देश सेवा के लिए तैयार हूँ और उस मार्ग में आने वाले हर संकट को सहन करूँगा । ' इन्दौर में सम्पन्न अ०भा) कांग्रेस कमेटी के जनरल अधिवेशन में भाग लेने सेठ जी पहुँचे, वहाँ भारी भीड़ थी। पं0 जवाहर लाल नेहरू भाषण दे रह थे। उनकी निगाह जब सेठ जी पर पड़ी तो तत्काल बोले 'आगरे का मोटा ताज जन-समुद्र की लहरों में फंसा हुआ है-- मैं जनता से निवेदन करता हूँ, उन्हें मंच पर आने दिया जाय इसी प्रकार एक बार नेहरू जी विदेश यात्रा से वापिस आये। सेठ जी माला लेकर अभिवादन करने सबसे आगे पहुँच गये। हवाई जहाज से उतरते हुए नेहरू जी ने कहा- 'सेठ जी क्या आज आप राष्ट्रपति हैं?' (सेठ अचल सिंह अभिनन्दन ग्रन्थ, पृष्ठ 50 ) सेठ जी जैनधर्म के कट्टर अनुयायी थे, 1936 में अजमेर में हुए द्वितीय ओसवाल जैन महासम्मेलन के आप सभापति चुने गये थे। 'ओसवाल सुधारक' का प्रकाशन आपकी देखरेख में ही होता था । भ) महावीर 2500वां निर्वाण महोत्सव समिति के भी आप सदस्य थे। आपने स्वयं लिखा है- 'मेरे जीवन पर महावीर स्वामी एवं जैनधर्म के गुरुओं-सन्तों का प्रभाव मेरे विद्यार्थी जीवन में ही पड़ चुका था । ' 'जेल में मेरा जैनाभ्यास' पुस्तक आपने जैन दर्शन की अनेक पुस्तकें पढ़ने के बाद लिखी थी। 450 पृष्ठों For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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