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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 85 में थाना छत्ता में बम फेंका गया, टेलीफोन की तार कुर्सी हथियाने का। पार्टियां धर्म के नाम पर जातिवाद व्यवस्था भंग कर दी गई, टूंडला स्टेशन पर रेल की व देश का विखंडन न करें। आज हम एकता की बागियां जला दी गयीं, पोस्ट आफिस फंके गये, इस बजाय अनेकता की ओर अग्रसर हो रहे हैं। देश तरह अनेक हिंसात्मक गतिविधियों का सफल निर्देशन विभाजित हो रहा है, जाति भेद में हम बंटे जा रहे हैं। आपने किया अनेकता एवं विभाजन के इस प्रवाह को रोकने की 1041-42 का व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन जरूरत है। समाज सेवी संस्थाओं, यवाओं तथा अंग्रेजों को सहयाग न देने के रूप में आंरभ हुआ। देशभक्तों को आगे आने की आज अत्यधिक 'भारत छोड़ो आन्दोलन' ने तो पूरे देश में आग ही आवश्यकता है।' लगा दी। इसस एक भारी तूफान उठ खड़ा हुआ, सारा अपनी जेल यात्रा का कोई संस्मरण सुनाने का दश आदालित हो उठा, धडाधड़ गिरफ्तारियां होने आग्रह करने पर उन्होंने कहा कि -- 'जब हम सभी लगी. विदशी कपडों की होली जलाई जाने लगी, सत महिलायें काम निपटाकर रात में एक साथ बैठतीं तो कातनः चरखा चलाना एवं खादी का प्रचार-प्रसार कोई न कोई कविता आदि सुनाती थीं, मैंने भी एक हुआ। कविता बनाई थी।' श्रीमती जैन ने स्वयं यह कविता 1946-48 के मध्य में सांप्रदायिक दंगे भड़क सुनाईउठे, आपके पति इन दिनों जेल में नजरबंद थे, उनका जेल मत समझो री बहनो निर्देश था कि 'मेरे सभी कार्यकर्ताओं के परिवारों की जेल जाने के लिए सहायता व देखभाल करें' इन सब में आप अनवरत कृष्ण मंदिर है वहां प्रसाद पाने के लिए। लगी रहीं। घर-घर जाकर उनकी सहायता की साथ ही सक्रिय रूप से आंदोलन में भाग लिया दो समय प्रसाद भी मिलता नहीं बराबर नियम से आज की पीढ़ी को आप क्या संदेश देना एक चमचा दाल, चाहेंगी' हमारे यह कहने पर आपने कहा कि-- 'मैं रोटी पांच खाने के लिये। बहत थोड़ी सी शिक्षा ही ग्रहण कर पायी पर उस हापुड़ के पापड़ से बढ़कर समय इतना मतलब अवश्य समझती थी कि देश को रोटियां हैं जेल की आजाद कराना है, मैं अनपढ़ तथा पढ़े-लिखे सभी से दाल क्या? जीरा जल, यह कहना चाहूँगी कि वो इस देश के मूल्यों को कब्जी मिटाने के लिये। पहचानें, इस धरोहर को सहेज कर रखें एवं इसके यहां कोई बेकार बैठ सकता है नहीं विकास के लिये उठ खड़े हों, यह देश हमारा है, इस चक्र भी है कृष्ण का चक्की चलाने के लिये। देश को अपना समझें, पहचानें, विदेशी फैशन को न शरम है गर, चोरी चारी कर अपनायें। हमारी सभ्यता एवं संस्कृति को सहेज कर जावें जेल में रखें।' देश हित तैयार हैं __ अंगूरी देवी जी की वेदना है कि 'राजनैतिक गरदन कटाने के लिये। पार्टियां धर्म को सड़क पर ला रही हैं। आ0-(1) साक्षात्कार (2) उ0 प्र0 जै0 ध0, पृ0 89 धर्म बौद्धिक ज्ञान व मनशुद्धि का साधन है न कि (3) जै0 स0 रा) अ) (4) गो0 अ0 ग्र), पृ0 218 For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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