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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 78 स्वतंत्रता संग्राम में जैन अमर शहीद चौधरी भैयालाल नाटा कद, गठीला बदन, गौर वर्ण और चेहरे पर जवानी की आभा, यही व्यक्तित्व था अमर शहीद चौधरी भैयालाल का। भैयालाल का जन्म 1886 में मध्यप्रदेश के दमोह नगर में पिता श्री हुआ। 1908 के बंग-भंग के समय से ही वे राजनीति में सक्रिय हो गये थे। देश को आजाद देखने की उनमें ललक थी। संगठन की अद्भुत क्षमता के धनी चौधरी जी 1920-21 में दमोह के कांग्रेस जनों में अग्रणी थे। उन्होंने लोकमान्य बाल गंगाधर राव तिलक को दमोह में आमन्त्रित किया, पर शासन की ओर से सभा पर पाबन्दी लगा दी गई। चौधरी जी इससे निराश होने वाले नहीं थे। उन्होंने 20 मील दूर श्री दि० जैन अतिशय क्षेत्र कुण्डलपुर की सुरम्य पहाड़ियों के मैदान में सभा कराई और अपनी संगठन क्षमता का परिचय दिया। शासन जनता पर इनके प्रभाव से परेशान था। । प्रथम विश्वयुद्ध के समय जब दमोह में रेटिंग ऑफिसर सैन्यदल में जनता की भर्ती करने आया और उसने म्युनिसिपल कार्यालय में अपना भाषण दिया, तब चौधरी जी ने विरोध स्वरूप भाषण के लिए समय मांगा। जब समय नहीं दिया गया तो उन्होंने धन्यवाद देने के बहाने समय मांगा। अंत में सीमित समय देने पर चौधरी जी ने 'सेना में भर्ती होने का विरोध किया और अगले दिन तिलक मैदान में सभा का ऐलान कर दिया। दूसरे दिन की सभा में जनता को इस सेना में भर्ती न होने की चेतावनी दी गई, नेताओं का तर्क था कि यह युद्ध हमारे देश के हित में नहीं है और न ही हमारे हितों के लिए लड़ा जा रहा है। इस अपराध के कारण चौधरी जी पर राजद्रोह का मुकदमा चला। इस मुकदमे में सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि सरकारी पक्ष से एक भी गवाह पूरे दमोह शहर व देहात में नहीं मिला, परन्तु चौधरी जी के पक्ष में दो हजार लोगों ने गवाही देने को अपने नाम दिये। सरकारी दबाव पड़ने पर भी जब कोई व्यक्ति गवाह के रूप में नहीं मिला तो बहुत दिनों तक मुकदमा टालते हुए अन्त में मुकदमा खारिज कर दिया गया। इसी बीच प्रान्तीय सरकार द्वारा सागर जिले के 'रतोना' ग्राम में बूचड़खाना खोले जाने का प्रस्ताव आया। सागर के साथ दमोह जिले में भी इसका डटकर विरोध किया गया, चौधरी जी इस विरोध में अग्रिम पंक्ति में थे। अंत में बूचड़खाने का कार्य बंद करा दिया गया। शहीद गाथा. पस्तक में 'शहीद चौधरी भैया लाल' के लेखक श्री कपर चंद विद्यार्थी ने एक घटना का उल्लेख किया है जो चौधरी जी के दबंग व्यक्तित्व को प्रकट करती है। 'चौधरी जी ने असहयोग में भाग लिया और प्रत्येक दकानदार से विदेशी कपडा बेचने का बहिष्कार कराया। एक धनी-मानी, विदेशी कपड़ों का प्रधान व्यापारी मना करने पर भी चोरी से रातों-रात कपड़ा बेचता और दिन को लम्बी-चौडी बातें करता। जब चौधरी जी को पता चला तो वे उसी दुकान के सामने अनशन पर बैठ गये और 3-4 दिन लगातार बैठते रहे, अन्त में दुकानदार ने महाबली होते हुए भी क्षमा मांगी। आखिर चौधरी जी ने छठे दिन अनशन तोड़ा।' चौधरी जी जब कलकत्ता कांग्रेस की किसी मीटिंग में भाग लेकर लौट रहे थे तब मिर्जापुर के आस-पास दो अंग्रेज सैनिकों से ट्रेन में ही उनका विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ गया कि अंग्रेज सैनिकों ने गोली चला दी। इलाहाबाद जंक्शन पर गाड़ी खड़ी होने पर लाश को बाहर निकाला गया और पुलिस के संरक्षण में दाह-संस्कार कर दिया गया। परिवार वालों को तार द्वारा सूचना दी गई, जो दो दिन बाद उन्हें मिली। परिजन यह दुखद समाचार सुनकर इलाहाबाद पहुँचे, परन्तु पुलिस ने कोई निश्चयात्मक उत्तर नहीं दिया और For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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