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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड ___77 अमर शहीद मुलायमचंद जैन जबलपुर (म०प्र०) के अमर शहीद मुलायमचंद जैन एक क्रान्तिकारी के हमशक्ल होने के कारण शहादत को प्राप्त हो गये। मुलायम चंद जैन, पुत्र-श्री भैयालाल पुजारी, जबलपुर के लार्डगंज में अपनी छोटी-सी कपड़े की दुकान चलाकर जीविकोपार्जन करते थे। अपनी पारिवारिक मजबूरियों के कारण मुलायम चंद स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भाग तो नहीं ले पाते थे, पर उनकी हृदय की भावनायें तो आजादी के लिए हिलोरे लेती ही रहती थीं, वे खादी पहनते थे, संध्या के समय दुकान पर कांग्रेसी मित्रों का जमावड़ा होता था। दो-तीन दैनिक-पत्र वे दुकान पर मँगवाया करते थे, उन पर चर्चा होती थी, गर्मागर्म राजनैतिक बहसें होती थीं। यह बात पुलिस की निगाहों में आ चुकी थी, पर बिना आरोप के पुलिस कुछ कर नहीं पा रही थी। एक रात अचानक पुलिस उन्हें पकड़ ले गई और जेल में बन्द कर दिया। बाद में पता चला कि पुलिस एक ऐसे आदमी की तलाश कर रही थी,जो वेष बदलकर पुलिस को चकमे दे रहा था। मुलायम चंद का चेहरा उससे मिलता जुलता था अतः पुलिस ने संदेह में उन्हें पकड़ लिया। जेल में साधारण पूछताछ के बाद जब मुलायमचंद कुछ नहीं बता सके, (बताते भी क्या ?) तो उन्हें भीषण यातनायें दी गईं। बर्बरतापूर्वक उनकी पिटाई की गई। यह क्रम लगातार नौ दिन तक चलता रहा। नौ दिन बाद जब वे छोड़े गये तो उनका शरीर इस योग्य नहीं रह गया था कि वह परतन्त्र भारत में साँस ले सके । वे मुँह से खाना नहीं खा पाते थे, पेशाब में निरन्तर खून आता था, उठने-बैठने में शरीर असमर्थ हो चुका था। एक माह तक जिन्दगी और मौत की आँख-मिचौली चलती रही। मुलायम चंद के पारिवारिक जनों/मित्रों/सहयोगियों/समाज के वरिष्ठ व्यक्तियों ने भरसक प्रयत्न किये पर मुलायमचंद को बचाया नहीं जा सका। इस प्रकार यह आजादी का प्रेमी अमर शहीद बिना किसी प्रमाणित अपराध के ही शहादत को प्राप्त हो गया। यह घटना 1942-43 की है। आ) (1) प0 जै0 इ.), पृष्ठ 518 (2) घटना के प्रत्यक्षदर्शी वयोवृद्ध स्वतन्त्रता सेनानी श्री रतन चंद जैन, जबलपुर द्वारा प्रेषित घटना क्रमा 000 हल्दीघाटी के युद्ध में पराजित होने के बाद जब राणाप्रताप ने स्वदेश परित्याग का संकल्प लिया तब स्वदेशभक्त और स्वामीभक्त भामाशाह राणाप्रताप का रास्ता रोककर खड़ा हो गया और देशोद्धार के लिये उन्हें उत्साहित करने लगा। राणा ने कहा-'न मेरे पास धन है, न सैनिक और न साथी। किस बलबूते पर मैं देशोद्धार का प्रयत्न करूँ।' भामाशाह ने तत्काल विपुलद्रव्य उनके चरणों में समर्पित कर दिया। वह द्रव्य इतना था जिससे 25000 सैनिकों का 12 वर्ष तक निर्वाह हो सकता था। For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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