SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 72 स्वतंत्रता संग्राम में जैन अमर शहीद मगनलाल ओसवाल अमर शहीद मगनलाल ओसवाल की शहादत भारत के स्वतंत्रता संग्राम में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। मगनलाल ओसवाल का जन्म 1906 ई० में जावरा (म०प्र०) में हुआ था। आपके पिता श्री हीरालाल ओसवाल इन्दौर में व्यवसाय करते थे। मोरसली गली में उनकी छोटी सी किराने की दुकान थी। मगनलाल अपने पिता की इकलौती संतान थे। ओसवाल जी की शिक्षा-दीक्षा अधिक नहीं हुई, मिडिल पास करने के उपरान्त आप पिताजी के साथ दुकान पर बैठने 1942 में जब 'भारत छोड़ो आन्दोलन' छिड़ा तब आपकी शादी हो चुकी थी, आप गृहस्थ बन गये थे और पिता भी। पर आजादी के दीवानों को क्या परिवार के बन्धन बाँध सके हैं? 'करो या मरो' के मूल मंत्र वाला अगस्त 1942 का आन्दोलन निर्णायक था, देश के सभी हिस्सों में इसकी गूंज थी, आजादी के दीवाने जगह-जगह भारत माँ को परतन्त्रता की बेड़ियों से मुक्त करने के लिए स्वयं बेड़ियाँ पहिन रहे थे, जेल की उन्हें परवाह न थी, माताओं की गोदें सूनी हो रहीं थीं और युवतियों की मांगें। इन्दौर शहर इस आन्दोलन में भला कैसे पीछे रहता। रोज सभायें, जुलूस, नारेबाजी, गिरपतारियाँ, गोली-डंडे चल रहे थे। इसी क्रम में 6 सितम्बर 1942 को एक जुलूस इन्दौर में निकला। इसका नेतृत्व श्री पुरुषोत्तम लाल 'विजय' कर रहे थे। जुलूस में लगभग 2-3 हजार लोग थे। जुलूस शान्त था। श्री मगन लाल भी आगे चलते हुए नारे लगाते जा रहे थे। 'भारत माता की जय', 'महात्मा गाँधी की जय', 'अंग्रेजो भारत छोड़ो', 'इंकलाब जिन्दाबाद'.........आदि। जब जुलूस सर्राफा बाजार में पहुँचा तो भारी संख्या में पुलिस आ गई और जुलूस को चारों तरफ से घेर लिया। सभी शान्त थे, पर बर्बरता की तो कोई सीमा नहीं, यह सदैव अपना घिनौना और वीभत्स चेहरा लिए ही प्रकट होती है। पुलिस ने अचानक इन अहिंसक सत्याग्रहियों पर लाठियों और गोलियों की बौछार शुरू कर दी। एक तरफ सभी निहत्थे थे, दूसरी तरफ थीं लाठियाँ और गोलियाँ। एक तरफ सभी शान्त थे, दूसरी तरफ थीं भद्दी-भद्दी गालियाँ। इन्दौर का सर्राफा बाजार जिन्होंने देखा है, वे जानते हैं कि इसकी सड़कें बड़ी संकरी हैं। पुलिस ने दोनों ओर से घेरकर सत्याग्रहियों को इतना पीटा कि बन्दूकें भी सहम गईं। __ इस गोली चालन में कुछ इधर-उधर बिखर गये, कुछ को गोलियाँ लगीं तो कुछ को लाठियाँ, कुछ जमे रहे, लाठियाँ खाते रहे, कुछ गिर पड़े। मगन लाल की जाँघ में तभी एक गोली लगी, वे वहीं गिर पड़े और जब बेहोश नहीं हुए-'भारत माता की जय, भारत माता की जय, भारत माता की जय, भारत.......' के नारे लगाते रहे। पुलिस की निर्दयता ने उस समय निर्दयता को भी पीछे छोड़ दिया जब कुछ पुलिस वालों ने निहत्थे, बेहोश पड़े मगन लाल पर जूतों की ठोड़े मारी। जुलूस के संचालक श्री पुरुषोत्तम लाल 'विजय' को उनके 15-20 साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। मगन लाल को भी गिरफ्तार किया गया, पर समस्या थी, घायल अवस्था में कहाँ ले जाया जाये? अन्त में पुलिस उन्हें तत्कालीन महाराजा तुकोजी राव अस्पताल ले गई। चारों ओर पहरा बैठा दिया गया। डाक्टरों ने ऑपरेशन किया, जाँघ से गोली निकाली, काफी बड़ा घाव हो गया और यह घाव अन्त तक भरा नहीं जा सका। मगनलाल अस्पताल में रहे. पलिस का पहरा रहा. घाव कभी भरता सा लगता. फिर बढ़ जाता। ऐसी ही आँख-मिचौनी चलती रही और लगभग सवा तीन बरस निकल गये। मगनलाल बिस्तर पर पड़े रोज नये समाचार सुनते, नई घटना, नई गिरफ्तारी, पर वह नहीं सुन सके जिसके लिए वे जी रहे थे, वह था, देश की आजादी का समाचार। वे सोचते 'काश! मैं उठकर भाग पाता। काश! यह घाव न होता तो अंग्रेजों को यहाँ से भगाकर ही दम लेता, पर सोचा कभी पूरा हुआ है क्या ?' ____ 23 दिसम्बर 1945 को आजादी का यह दीवाना देश की आजादी का सपना अपने हृदय में छिपाये हुए वीरगति को प्राप्त हो गया। ___ आ)- (1) म) प्र) स्व) सै0, भाग 4, पृष्ठ 34 (2) क्रान्तिकथायें, पृष्ठ 788 (3) म0 स), 15 अगस्त 1987, पृष्ठ अ-2700 एवं ब-49 (4) नवभारत, भोपाल, 6 जुलाई 1997 For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy