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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 71 प्रथम खण्ड बन्द इन क्रान्तिकारियों को भी चैन नहीं था, वे किसी भी कीमत पर बाहर निकलकर क्रान्ति की ज्वाला को प्रज्ज्वलित रखना चाह रहे थे। वे जानते थे कि भागने पर पकड़े गये तो मौत के सिवा कुछ नहीं मिलेगा, पर उनका मानना था कि हमारी मौत के बाद भी देश आजाद हो जाये तो ऐसी मौत सार्थक है। सोलह क्रान्तिकारियों ने जेल से भागने की योजना बनाई। योजनानुसार लघुशंका का बहाना बनाकर पहरेदार को दरवाजा खोलने को कहा गया। दरवाजा खुलते ही पहरेदार की बन्दूक छीन ली गई और क्रान्तिकारी जेल की दीवार से छलांग लगाकर भागे। इधर शोर-शराबा हुआ। पता लगते ही पुलिस भी पीछे पीछे भागी। क्रान्तिकारियों में कोई कृष्णा नदी के पानी में डबकी लगा गया तो कोई सांगलवाडी क भागा। कुछ हरिपुर की ओर प्रयाण कर गये। अण्णा साहब को तैरना नहीं आता था अतः वे समडोली की ओर भागे। जुलाई का महीना और बरसात के कारण गीली मिट्टी। अण्णा साहब के पैर मिट्टी में सन गये थे, दौड़ने की बात तो दूर चलने में भी परेशानी हो रही थी। तभी धाय......धाय......गोली चली और अण्णा साहब वहीं शहीद हो गये। वह कर दिन था 24 जलाई 1943 ई० ___आजादी के बाद सांगली के एक चौक को 'हुतात्मा अण्णा पत्रावले चौक' नाम दिया गया है और यहीं हाईस्कूल के समीप उनकी प्रतिमा (स्टेच्यू) लगी है। ___Who's who of Indian Martyres, Vol. I, Page 272 पर अण्णा साहब पत्रावले के सन्दर्भ में लिखा गया है- 'Took part in the Quit India Movement (1942). Arrested and sentenced to a term of imprisonment. shot and killed on July 24, 1943, while trying to escape from the Sangli Jail.' आ) - (1) Who's who of Indian Martyres, Vol. I, Page 271-272 (2) सन्मति (मराठी), अगस्त 1957 गांधी जी के जीवन में प्रसिद्ध आध्यात्मिक संत श्रीमद् रायचन्द्र का गहरा प्रभाव था। जब दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी को हिन्दू धर्म पर अनेक शंकाएँ हुईं और उनकी आस्था डिगने लगी तब अपनी लगभग 33 शंकाएँ गांधी जी ने रायचन्द्र को भेजी। राजचन्द्र जी ने उनके जो उत्तर दिए उनसे गांधी जी की सत्य और अहिंसा में दृढ़ आस्था हो गई। स्वयं गांधी जी ने लिखा है - 'मेरे जीवन पर गहरा प्रभाव डालने वाले आधुनिक पुरुष तीन हैं ; रायचन्द भाई ने अपने सजीव सम्पर्क से, टॉलस्टाय ने 'बैकुण्ठ तेरे हृदय में' नामक अपनी पुस्तक से और रस्किन ने 'अन्टु दिस लास्ट'-सर्वोदय नामक पस्तक से मझे चकित कर दिया।" (आत्मकथा. प० 76) For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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