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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 66 स्वतंत्रता संग्राम में जैन अमर शहीद साबूलाल जैन बैसाखिया अत्यल्प वय में ही स्वतंत्रता की बलिवेदी पर अपनी कुर्बानी देकर भारत माँ को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने का रास्ता प्रशस्त कर गये शहीदों में गढ़ाकोटा, जिला-सागर (म0प्र0) के अमर शहीद श्री साबूलाल बैसाखिया का नाम अग्रगण्य है। साबूलाल का जन्म 1923 ई० में गढ़ाकोटा में हुआ। पिता पूरन चंद, वास्तव में उसी दिन पूरन (पूर्ण) हुए थे, जब साबूलाल ने उनके घर जन्म लिया। बालक साबलाल ने स्थानीय स्कल में ही पांचवीं तक शिक्षा ग्रहण की। उन दिनों दर्जा पांच पास कर लेना भी बहत समझा जाता था। साबूलाल की इच्छा और अधिक पढ़ने की थी, पर पिता की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, अत: असमय में ही उन्हें पढ़ाई छोड़कर गृहकार्य में लग जाना पड़ा। पर इससे देश-प्रेम की जो भावना उनमें जाग चुकी थी, वह मन्द नहीं पड़ी प्रत्युत दिन-ब-दिन बढ़ती ही गई। 1942 का 'भारत छोड़ो आन्दोलन' निर्णायक था। भारत माँ आजादी के लिए तड़फड़ा रही थी, रणबांकुरे एक-एक कर इस यज्ञ में अपना होम देने के लिए तैयार थे। सारे देश में हड़तालों, जुलूसों, सभाओं आदि का आयोजन हो रहा था। स्त्री और पुरुष सभी इस आन्दोलन में सहभागी थे। __ बुन्देलखण्ड का हृदय 'सागर' आजादी की इस बयार से अछूता कैसे रहता। सागर शहर ही नहीं पूरे जिले में इस आन्दोलन ने एक क्रांति ला दी थी। प्रायः प्रतिदिन हड़ताल, जुलूस और आम सभायें हो रही थीं। छात्रों की भागीदारी भी इसमें कम नहीं थी, वे स्कूल छोड़-छोड़कर आजादी की इस लड़ाई में कूद पड़े थे। 22 अगस्त 1942 को गढ़ाकोटा में एक वृहत् सभा का आयोजन हुआ। सर्व सम्मति से तय हुआ कि 'अंग्रेजी शासन तन्त्र का प्रतीक पलिस थाना यहाँ है. अत: इस पर ही तिरंगा झंडा फहराया जाये।' तत्काल ही उस सभा ने एक जुलूस का रूप ले लिया। जुलूस का नेतृत्व गढ़ाकोटा की वीरांगना पार्वतीबाई कर रहीं थीं। जुलूस में लगभग ढाई हजार स्त्री-पुरुष थे। यह संख्या किसी बड़े शहर के लिए कम प्रतीत हो सकती है, पर गढ़ाकोटा जैसे कस्बे में इतना बड़ा जुलूस शायद ही कभी निकला हो। ___'भारत माता की जय', 'इंकलाब जिन्दाबाद', 'अंग्रेजो भारत छोड़ो' आदि नारे लगाता हुआ जुलूस पुलिस थाने पहुँचा। सैकड़ों नवयुवक हाथ में तिरंगा लिये, 'पहले मैं झंडा चढाऊँ !' 'पहले झंडा मैं चढाऊँ!' इस भावना से आगे बढ़े जा रहे थे। इधर पुलिस को जुलूस की सूचना पहले ही मिल गई थी, वह प्रतिरोध को तैयार थी। जब युवकों ने झंडा चढ़ाने का प्रयत्न शुरू किया तब पुलिस ने चेतावनी दी, पर आजादी के मतवाले कहाँ मानने वाले थे। पुलिस ने लाठीचार्ज शुरू कर दिया। लाठी खाकर भी आजादी के दीवाने गिरते रहे और आगे बढ़ते रहे, पर अपने कर्तव्य से विमुख नहीं हुए। भीड़ को अनियन्त्रित देखकर पुलिस सब-इन्सपेक्टर गया प्रसाद खरे तथा कुछ अन्य सिपाहियों ने गोलियां चलाना प्रारम्भ कर दिया। पर गोलियों की परवाह किसे थी। साबूलाल भी हाथ में झंडा लिये थे, वे जानते थे कि थोड़ा भी आगे बढ़ना, मौत को आमन्त्रण देना है। जीवन की समाप्ति है। किन्तु 'जो घर से ही कफन बांधकर चला हो, उसे जीवन का मोह रोक नहीं सकता, वह तो क्षण-क्षण अपनी मृत्यु प्रेमिका सं मिलने को विह्वल रहता है।' साबूलाल अपने चार-पाँच साथियों के साथ आगे बढ़े, वे यूनियन जेक For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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