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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 61 प्रथम खण्ड चलीं, जो आगे खड़े साताप्पा को लगीं। उनकी छाती से रक्त की धार फूट पड़ी और मुँह से 'वन्दे मातरम्'। साताप्पा नीचे गिर पड़े। बालाप्पा आडिन, गुंडाप्पा पटगुंदी, सावंत जोडही, रुद्राप्पा मंगली, गंगाप्पा अरबल्ली, महादेव टोपण्णावर आदि अनेक युवक गिरफ्तार कर लिये गये। अंग्रेज अफसर ने ग्राम-पंचायत पर कब्जा कर लिया। खुन से लथपथ साताप्पा को घर लाया गया। पर वे तो इस नश्वर देह को त्यागकर अंग्रेजों से लड़ने के लिए पुनर्जन्म धारण करने हेतु प्रयाण कर चुके थे। वे मरकर भी अमर हो गये। कडवी शिवापूर में जिस स्थान पर उन्हें शहादत प्राप्त हुई थी, उस स्थान पर उनकी स्मृति में खड़ा स्मारक आज भी उनकी कीर्ति कथा कह रहा है। 'सन्मति' (मराठी) लिखता है ___-क्र कालानं त्याचं फुलतं जीवन हिरावलं होतं, पण त्याला हुतात्म्यानं तेजस्वी मरण देऊन। कडवी शिवापूरच्याव नव्हे तर भारतीय स्वातंत्र्याच्या इतिहासांत अमर केलं यात शंका नाही।' आ)-(1) सन्मति (मराठी), अगस्त 1957 (2) भारतीय स्वातन्त्र्यलढ्यातील जैनांचे योगदान (मराठी), पृष्ठ-39 भगवान् महावीर ने हमें अहिंसा का उपदेश दिया, जो आज भी विश्व के लिए उतना ही महत्त्वपूर्ण है, जितना 2500 वर्ष पूर्व था। विश्व में मानवता के लिए इससे बड़ा सिद्धांत नहीं हो सकता। अहिंसा क आन्दोलन की शक्ति बना। गांधी जी, पं0 जवाहर लाल नेहरू और इन्दिरा जी ने भी अपनी नीतियां बनाते समय जैन सिद्धांतों की ओर देखा था। हमारी विदेश नीति भी महावीर के सिद्धांतों पर ही आधारित है। चाहे नि:शस्त्रीकरण की बात करें या गुट निरपेक्षता की अथवा पर्यावरण सुधार की, यही सिद्धांत हमारे सामने रहता है। जब हम चुनौतियों को देखते हैं, तो हमारे सामने एक ही रास्ता रह जाता है और वह है अहिंसा का। आज विदेशी शक्तियाँ भी महसस करती हैं कि मानवता को बचाने के लिए अहिंसा ही एकमात्र रास्ता है। - प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी 18 अप्रैल 1989 को महावीर वनस्थली के उद्घाटन पर प्रदत्त भाषण का अंश For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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