SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड 47 बांठिया जी की दैनिक चर्या बड़ी नियमित थी। प्रातः उठकर जिनेन्द्र देव की अर्चना और यदि कोई मुनि / साधक विराजमान हों तो उनके उपदेश सुनना, समय पर कोषालय जाना, सूर्यास्त से पूर्व भोजन और रात्रि नौ बजे शयन उनके यान्त्रिक जीवन के अंग थे। 'गंगाजली' के खजांची पद को सुशोभित करने के कारण बांठिया जी का आत्मीय परिचय बड़े-बड़े राज्याधिकारियों से हो जाना स्वाभाविक ही था। सेना के अनेक अधिकारियों का आवागमन कोषालय में प्राय: होता रहता था। बांठिया जी के सरल स्वभाव और सादगी ने सबको अपनी ओर आकर्षित कर लिया था। चर्चा- प्रचर्चा में अंग्रेजों द्वारा भारतवासियों पर किये जा रहे अत्याचारों की भी चर्चा होती थी। एक दिन एक सेनाधिकारी ने कहा कि 'आपको भी भारत माँ को दासता से मुक्त कराने के लिए हथियार उठा लेना चाहिए। ' बांठिया जी ने कहा- 'भाई अपनी शारीरिक विषमताओं के कारण में हथियार तो नहीं उठा सकता पर समय आने पर ऐसा काम करूँगा, जिससे क्रांन्ति के पुजारियों को शक्ति मिलेगी और उनके हौसले बुलन्द हो जावेंगे। ' ध्यातव्य है कि अंग्रेजों के विरुद्ध जहाँ कहीं भी युद्ध छिड़ता था, वे भारतीय सैनिकों को ही सर्वप्रथम युद्ध की आग में झोंक देते थे। एक वयोवृद्ध सन्यासी ने अमरचंद बांठिया से चर्चा में 1857 के पूर्व की एक घटना सुनाते हुए कहा कि - 700 बंगाली सैनिकों की एक रेजीमेन्ट को अंग्रेज अफसरों ने इसलिए गोलियों से भून दिया था, कि उन्होंने बैलों पर चढ़कर जाने से मना कर दिया था।' ज्ञातव्य है कि भारतीय संस्कृति में गाय हमारी माता है और उसके पुत्र बैल पर चढ़कर जाना पाप माना जाता है। सैनिकों ने इसी कारण बैल की पीठ पर बैठने से मना कर दिया था। यह भी ध्यातव्य है कि गाय बैल की चर्बी लगे कारतूस को मुंह से खोलने के लिए मना करने पर हजारों निरपराध सैनिकों को अंग्रेज अधिकारियों द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया था। ऐसी ही अनेक घटनाओं को सुन-सुनकर बांठिया जी का हृदय भी देश की आजादी के लिए तड़फडाने लगा। इधर मुनिराज के प्रवचन में भी उन्होंने एक दिन सुना कि 'जो दूसरों के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दे, उसी का जन्म सार्थक है, वह मरणोपरान्त अमर रह सकता है।' यह सुनकर बांठिया जी का निश्चय दृढ से दृढतर और दृढतर से दृढतम हो गया। उन्होंने तय किया कि मातृभूमि की रक्षा के लिए मुझे जो भी समर्पित करना पड़े, करूँगा। यह अवसर शीघ्र ही उनके सामने आ गया। 1857 की क्रान्ति के समय महारानी लक्ष्मीबाई उनके सेना नायक राव साहब और तात्या टोपे आदि क्रान्तिवीर ग्वालियर के रणक्षेत्र में अंग्रेजों के विरुद्ध डटे हुए थे, परन्तु लक्ष्मीबाई के सैनिकों और ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों को कई माह से वेतन नहीं मिला था, न ही राशन- पानी का समुचित प्रबन्ध हो सका था। तब बांठिया जी ने अपनी जान की परवाह न करते हुए क्रान्तिकारियों की मदद की और ग्वालियर का राजकोष लक्ष्मीबाई के संकेत पर विद्रोहियों के हवाले कर दिया। ग्वालियर राज्य से सम्बन्धित 1857 के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज राष्ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्ली, राजकीय अभिलेखागार, भोपाल आदि में उपलब्ध हैं। डॉ० जगदीश प्रसाद शर्मा, भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली ने इन दस्तावेजों और अनेक सरकारी रिकार्डों के आधार पर विस्तृत विवरण 'अमर शहीद : अमरचंद बांठिया ' पुस्तक में प्रकाशित किया है, जिसके अनुसार- 1857 में क्रान्तिकारी सेना जो अंग्रेजी सत्ता को देश For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy