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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम खण्ड अमर शहीद फकीरचंद जैन भारतवर्ष में स्वातन्त्र्य समर में हजारों निरपराध मारे गये, और यदि सच कहा जाये तो सारे निरपराध ही मारे गये, आखिर अपनी आजादी की मांग करना कोई अपराध तो नहीं है। ऐसे ही निरपराधियों में थे 13 वर्षीय अमर शहीद फकीरचंद जैन। फकीरचंद अमर शहीद लाला हुकुमचंद जैन के भतीजे थे। हुकुमचंद जैन ने 1857 के प्रथम स्वाधीनता आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हुकुमचंद जैन हांसी के कानूनगो थे, बहादुरशाह जफर से उनके बहुत अच्छे सम्बन्ध थे, उनके दरबार में श्री जैन सात वर्ष रहे फिर हांसी (हरियाणा) के कानूनगो होकर आप अपने गृहनगर हांसी लौट आये। आपने मिर्जा मुनीर बेग के साथ एक पत्र बहादुरशाह जफर को लिखा, जिसमें अंग्रेजों के प्रति घृणा और उनके विरुद्ध संघर्ष में पूर्ण सहायता का विश्वास बहादुरशाह जफर को दिलाया था। जब दिल्ली पर अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया तब बहादरशाह जफर की फाइलों में यह पत्र अंग्रेजों के हाथ लग गया। तत्काल हकमचंद जी को गिरफ्तार कर लिया गया, साथ में उनके भतीजे फकीरचंद को भी। 18 जनवरी 1858 को हिसार के मजिस्ट्रेट ने लाला हुकुमचंद और मिर्जा मुनीर बेग को फांसी की सजा सुना दी। फकीर चंद को मुक्त कर दिया गया। 10 जनवरी 1858 को हुकुमचंद और मिर्जा मुनीर बेग को हांसी में लाला हुकुमचंद के मकान के सामने फांसी दे दी गई। 13 वर्षीय फकीरचंद इस दृश्य को भारी जनता के साथ ही खड़े-खड़े देख रहे थे, पर अचानक यह क्या हुआ ? गोराशाही ने बिना किसी अपराध के, बिना किसी वारन्ट के उन्हें पकड़ा और वहीं फांसी पर लटका दिया। इस प्रकार अल्पवय में ही यह आजादी का दीवाना शहीद हो गया। आ)- (1) Who's who of Indian Martyrs, Volume III, Page, 56.57 (2) सन् सत्तावन के भूले-बिसरे शहीद, भाग 3, पृष्ठ 68-70 (3) डॉ० रललाल जैन, हाँसी का आलेख (4) शोधादर्श. फरवरी 1986 (5) The Martyrs, Page 10-13 (6) जैन दर्पण, दिसम्बर 1995 (7) अमृतपुत्र, पृष्ठ 27 एवं 73 000 महात्मा गांधी ने जिस अहिंसा के बल पर देश को आजादी दिलाई उसकी प्रेरणा उन्हें अपने वैष्णव और जैन संस्कारों से मिली थी। गांधी जी जब अध्ययनार्थ विदेश जाने लगे और उनकी माता ने उन्हें इस भय से भेजने में आना-कानी की, कि विदेश में जाकर यह माँस-मदिरा भक्षण करेगा तब जैन मुनि बेचरजी स्वामी ने उन्हें माँसादि सेवन न करने की प्रतिज्ञा दिलाई थी। स्वयं गांधी जी ने लिखा है'बेचरजी स्वामी मोढ़ बनियों में से बने हुए एक जैन साधु थे, ............उन्होंने मदद की। वे बोले-'मैं इस लड़के से इन तीनों चीजों के व्रत लिवाऊँगा। फिर इसे जाने देने में कोई हानि नहीं होगी।' उन्होंने प्रतिज्ञा लिवाई और मैंने माँस, मदिरा तथा स्त्री-संग से दूर रहने की प्रतिज्ञा की। माताजी ने आज्ञा दी।' - सत्य के प्रयोग, पृ० 32 For Private And Personal Use Only
SR No.020788
Book TitleSwatantrata Sangram Me Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain, Jyoti Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2003
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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