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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ३ उ. २ अनुकूलोपसर्गनिरूपणम् । ७९ अन्वयार्थ:--(चिर) चिरचिरकालं (दुइजमाणस्स) विहरत: ग्रामानुग्राम गच्छतः (तव) व (दाणि) इदानी (दोसो) दोषः (को) कुतः नास्तिदोषः (इच्चेवं) इत्येवं क्रमेण (नीवारेण) नीवारेण ब्रीहिविशेषकणदानेन (सूयरं व) रकरमिव (निमंते ति) निमंत्रयति भोगवुद्धिं कारयन्तीति ॥१९॥ टीका-हे मुनिश्रेष्ठ ! 'चिर" चिरंबहुकालम् 'दुइज्जमाणस्स' विहरतःसंयमानुष्ठानपूर्वकं ग्रामानुग्रामं विहरतस्तव 'दाणि' इदानीमेतस्मिन् समये (कुतो) पुनः कहते हैं-'विरं दुइज्जमाणस' इत्यादि। शब्दार्थ-हे मुनि श्रेष्ठ 'चिरं-चिरम्' बहुत काल से 'दइज्जमा जस्त-विहरतः' संयम का अनुष्ठानपूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करते हुए 'तब-तव' आप को 'दाणि-इदानी' इस समय 'दोसो-दोषः' दोष 'कओ-कुना कैसे हो सकता है 'इच्चेव-इत्येवम्' इस प्रकार 'निवा. रेग-नीवारेण' चावल के दानों का लोभ दिखाकर 'मयरंव-सूकरमिव' सूकर को जैसे लोग कसाते हैं इसी प्रकार मुनि को 'निमंतेति-निमंप्रयन्ति' भोग भोगने के लिए निमंत्रित करते हैं ॥१९॥ ___ अन्वयार्थ-चिरकाल तक संयम विहार करने वाले तुम्हें अब दोष कैसे लग सकता है ? इस प्रकार भोगों के लिए आमंत्रित करके वे लोग साधु को उसी प्रकार लुभाते हैं, जैसे चावल के कणों से शूकर को लुभाया जाता है ॥१९॥ पणी तो तन मे छे -'चिरं दूइज्जमाणस्स' त्या शहाय- मुनिश्रेष्ठ 'चिरं-चिरम्' म सा था 'दूइज्जमापस्स -विहरतः' यमना मनुष्ठान श्राभानुश्राम विडार ४२त २i 'तव-तव' मापन 'दाणि-इदानों' मा समये 'दोसो-दोषः' होप 'कओ- कुतः' वी शते यध छ ? 'इच्चेव- इत्येवम्' मा रे 'नीवारेण-नीवारेण' यामाना हासाना सोम हेमान 'सूयरंव-सूकरमित्र' सू४२ने थी माणसे। सावे तेवा आरे भनिन 'निमंति-निमंत्रयन्ति' -मेगवान माटे निभत्रित ४२ छ.११६॥ સૂત્રાર્થ –દી કાળથી આપ સંયમની આરાધના કરી રહ્યા છે, તે હવે આપને કેઈ પણ દેષ સ્પશી શકે તેમ નથી! જેવી રીતે ચોખાના દાણું પાથરી દઈને શકરને (સૂવરને) લલચાવવામાં આવે છે, એજ પ્રમાણે લેકે દ્વારા સાધુને ભેગોમાં આસક્ત કરવાને પ્રયત્ન કરાય છે. ૧લા ટીકાર્થ– તેઓ તેને કહે છે) હે મુનિ ! આપે ચિરકાળ પર્યન્ત For Private And Personal Use Only
SR No.020780
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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