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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृतामसूत्रे अनाया:-(आमणि) आशनि-घृतपानादिना शरीरस्थौलीकरणम् , तथा(अक्खिराग) . अतिरजम्-नेत्ररञ्जनम् (गिधुवघायकम्मर्ग) गृद्धयुषघातकर्मकम् पद्धि गाय-गृद्धिभावकरणम् उपघातकर्म-उपकारक्रिया (उच्छोलणं च) उच्छो. छनं च-अयत्नतः उदकेन पुनः पुनः हस्तपादनक्षालनम् (कक) कल्कं च लोध्रादि द्रव्येण शरीरस्योद्वर्तनकरणम् (तं) तदेतत्सर्वम् (विज्ज) विद्वान् (परिजाणिया) परिजानीयात्-ज्ञपरिज्ञया ज्ञात्वा प्रत्याख्यानपरिज्ञया परित्यजेदिति ॥१५॥ ____टीका-'आमूर्णि' आशूनि-धृतपानादिना मकरध्वजादिरसायनिकौषधिविशेषेण च शारीरिकवलसंवर्द्धनम् , 'अक्खिरराग' अक्षिरागम्-अक्ष्णोः रागम्अञ्जन लगाना 'गिधुवाघायकम्मर्ग-गृथुपघातकर्मकम्' तथा शब्दादि विषयों में आसक्त होना, एवं जिस कर्म से जीवोका घात होता है उसे करना 'उच्छोरणं च-उच्छोलनंच' अयत्न पूर्वक ठंडा पानीसे हस्तपाद आदि का बार बार धोना तथा 'कक-कल्कम्' हल्दी आदिसे शरीर में पीठी लगाना 'तं विज्जं परिजाणिया-तत् विद्वान् परिजानीयात्' इन सभीको विद्वान् मुनि ज्ञपरिज्ञासे संसार भ्रमणका कारणरूप समझ कर प्रत्याख्यान परिज्ञासे उस का त्याग करें ॥१६॥ __अन्वयार्थ-घृतपान आदि करके शरीर को स्थूल बनाना, नेत्रोंको रंगना, गृद्धिभाव करनो, अपकार करना, बारबार हाथ पांव धोना, शरीर का उघटन करना इन सब को मेधावी पुरुष ज्ञपरिज्ञा से जान कर प्रत्याख्यान परिज्ञा से त्याग दे ॥१५॥ .. टीकार्थ--घृतपान आदि करके तथा कस्तूरी मकरध्वज आदि रासा. wing'. गिधुवघायकम्मगं-गृद्धथुपघातकर्मकम्' तथा Avalle विषयमा भासत य तथा जे भयी ७वान धात थाय ते ४ ४२७'. 'उच्छो. लणंच-उच्छोलन च यत्न विना ४. पाणथी हाथ, ५, विरे पापा तथा 'कर्क-कल्कम्' सहर विशेश्थी शरीरमा पीही यावी-सगावी 'तं विज्ज परिजाणिया-तत् विद्वान् परिजानीयात्' मा प्रधान विद्वान मुनिश परिज्ञाथी સંસાર ભ્રમણના કારણરૂપ સમજીને પ્રત્યાખ્યાન પરિણાથી તેને ત્યાગ કર ૧૫ા અન્વયાઈ–વૃતપાન વિગેરે કરીને શરીરને સ્થળ બનાવવું. અને રંગવી. शृद्धि भाव (IAS) राम. वा पार सय ५५ पापा, शरीरने शावु આ બધાને ડાહ્યો પુરૂષ જ્ઞ પરિજ્ઞાથી જાણીને પ્રત્યાખ્યાન પરિજ્ઞાથી તેને ત્યાગ કરે છે૧પ દ્રિીકાઈ–વૃતપાન વિગેરે કરીને તથા કસ્તુરી, મકરધ્વજ વિગેરે રસાયનિક For Private And Personal Use Only
SR No.020780
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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