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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी गका प्र. श्रु. भ. १२ समवसरणस्वरूपनिरूपणम् २६३ माहुः-कथयन्ति । यद्वा-'छलायतणं' छलायतनम्-छलानां-कपटानाम् आयतनं -स्थानं छलायतनम् एतादृशम् 'कम्म' कर्म कुर्वन्तीति ॥५॥ मूलम्-ते एवमक्खंति अबुज्झमाणा, विरूवरूवाणि अकिरियवाई। जे मायइत्ता बहवे मैणूसा, भवंति संसारमणोवदग्गं ॥६॥ छाया-ते एवमाख्यान्त्यबुद्धयमाना, विरूपरूपाण्यक्रियावादिनः। ___ यान्यादाय बहवो मनुष्या, भ्रमन्ति संसारमनवदग्रम् ॥६॥ दत्त के पास नयाकम्पल हैं। किन्तु छलवादी इस अर्थ को छोड़कर 'नव' शब्द में संख्या का आरोप कर लेता है और कहता है-देवदत्त के पास नौ कंपल कहां हैं ? ये अक्रियावादी भी इसी प्रकार छल का प्रयोग करते हैं ॥५॥ 'ते एवमक्खंति' इत्यादि। शब्दार्थ-'ते-ते' वे पूर्वोक्त अकिरियावाई-भक्रियावादिनः वस्तुस्वरूपको न समझने वाले चार्वाक बौद्ध आदि अक्रियावादी 'अबुज्झमाणा-अबुध्यमानाः' सदसद्धोध न जानते हुए एवं ‘एवं-एवम्' इस प्रकार से विरूवरूवाणि-विरूपरूपाणि' अनेक प्रकार के शास्त्रों का 'अक्खंति-आख्यान्ति' कथन करते हैं 'जे मायइत्सा-यमादाय' जिन शास्त्रोंका आश्रयलेकर वहवे मणूसा-बहवो मनुष्या' बहुतसे अज्ञानी દેવદત્તની પાસે નવી કાંબળે છે. પરંતુ છલવાતી આ અર્થને છોડીને “રા' : શબ્દમાં સંખ્યાને આરેપ કરીલે છે, અને કહે છે કે-દેવદત્તની પાસે નવ કાંબળે ક્યાં છે? આ અક્રિયાવાદી પણ એજ પ્રમાણે છળનો પ્રયોગ रैछे. ॥५॥ 'ते एवमकखंति' त्या शहाथ-'ते-ते' से ५२ ४ामा मावस 'अकिरियावाई-अक्रियावा. दिनः' परतुना यथाय पणाने न सभा पार या मौद्ध विगरे मलि. यावाल्यो 'अबुझमाणा-अबुध्यमानाः' सहसाधने न समय 'पषंपवम्' मा माथी 'विरूवरूवाणि-विरूपरूपाणि' सन २॥ श्रीन 'अवंति-माख्यान्ति' ४थन ४रे छे. 'जे मायइत्ता-यमादाय' २ शासोना माश ने 'बहवे मणूमा-बहवो मनुष्याः' या सपा मशानी मनुष्य। For Private And Personal Use Only
SR No.020780
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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