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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३३३ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ११ मोक्षस्वरूपनिरूपणम् अन्वयार्थः- (अह) अथ-भावमार्गपतिपत्त्यनन्तरम् (वयं) व्रतम्-साधु धर्मम् (आवन्न) आपन्नं पाप्त-प्रतिपन्नवत मित्यर्थः (ग) तम् पूर्वोक्त मुनि यदि (उच्चावया) उच्चावचा:-तीव्रा अतीव्र नानाविधाः (फापा) स्पर्शाः परीषहोपसर्गाः (फुसे) स्पृशेयुः- उपद्रवेयुः तदा स मुनिः (तेसु) तैः-परीषहोपसमें: (ण विणिहणेजा) न दिनिहन्यात्-न प्रतिस्तो भवेत् न विचलेदिति भावः, केन कइव ? इति दृष्टान्तमाह-(वाएण) पातेन (महाबातेन (महागिरी इव) महगिरिरित्र-मेहार्वत इवेति ॥३७॥ 'अहण वयमावन' इत्यादि। शब्दार्थ-'अह-अर्थइसके पश्चात् वयं व्रतम्' साधुव्रत में 'आदम -आपनम्' प्राप्त र हे हुए ‘ण-तं निम्' उल मुनिको 'उच्चाधया-उच्चा. वचाः' नाना प्रकार के 'फामा-सी' परीषद और उपसर्ग 'फुसेस्पृशेयुः स्पर्श करे 'तेसु-तै। उन परीषह एवं उपसोसे ण विणिह णेज्जा-न विनिहन्यात्' पराजित न होवे अर्थात् दृढ रहें । कैसे दृढ रहे सो कहते हैं 'वाएण-वातेन' महावात से 'महा गिरि इव-महागि रिरिव' मेरू पर्वतके समान दृढ रहे ॥३७॥ ___ अन्वयार्थ---भावमार्ग को अंगीकार करने के पश्चात् साधुधर्म को प्राप्त करने वाले मुनि को कदाचित् तीव्र या मन्द नाना प्रकार के परी. षह और उपसर्ग आवे तो मुनि उनसे प्रतिहत न हो-विचलित न हो, जैसे आंधी से सुमेरु पर्वत विचलित नहीं होता ॥३७॥ अहणं वयमावन्न' इत्यादि शहाथ---'अह-अथ' ते पछी 'वय-व्रतम्' साधु व्रतमा 'आवन्न-पापनिम्' २७सा 'णं-तं मुनिम्' भुनिने 'उच्चावया-उच्चावचाः' मने प्रारना फासा-स्पर्शाः परीष भने ७५ फुसे-स्पृशेयुः' १५० ४३ 'तेसु-तैः' में परीष भने ५था 'ण विणिहणेज्जा-न विनिहन्यात' ५२त न याय અર્થાત્ સંયમ પાલનમાં મજબૂત રહેવું. કેવી રીતે મજબૂત રહેવું જોઈએ? तमतात सूत्रा२४ छ -'वाएण-वातेन' भडावातथी अर्थात बाजी याथी 'महागिरि इव-महागिरिरिव' भे३ पतनी म १८ २९ ॥3॥ અન્વયાર્થ–-ભાવ માર્ગને અંગીકાર કરીને પછીથી સાધુધ મને પ્રાપ્ત કરવાવાળા મુનિને કદાચ તીવ્ર અથવા મંદ અનેક પ્રકારના પરીષહે અને ઉપસર્ગો આવે તે મુનિએ તેનાથી અપતિહત ન થવું. અર્થાત્ ચલિત ન થવું જેમ વાવાઝોડાથી સુમેરૂ ચલિત થતું નથી તેમ જ સ્થિર રહેવું. ૩ सू० ३० For Private And Personal Use Only
SR No.020780
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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