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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृताङ्गसूत्रे छाया-संबुध्यमानस्तु नरो मतिमान् , पापात्वात्मानं निवर्तयेत् । .. हिंसाप्रसूतानि दुःखानि मत्वा, वैरानुबन्धीनि महाभयानि ॥२१॥ अन्वयार्थ:--(संयुज्झमाणे मतीमं परे) संबुध्यमानः-धर्म-भावसमाधि जानानः मतिमान्-शोभनमज्ञावान् नरः-पुरुष: 'पावा उ अपाणनिचट्टएज्जा' पापात् प्राणातिपातादिलक्षणात् कर्मण आत्मानं निवर्तयेत् (हिंसप्पसूयाई) हिंसा प्रमतानि-माणिविराधनादितो जायमानानि कर्माणि (वेराणुबंधीणि) वैरानुबन्धीनि-भवपरम्परावर्द्वकानि (महब्भयाणि) महाभयानि-महाभयजनकानि (दुहाई) दुःखानि-नरकनिगोदादिपरिभ्रमणलक्षणदुःखजनकानि, इति (मत्ता) मत्वाधात्वा आत्मानं पापात् निवर्तयेदिति ॥२१॥ ._ 'संबुज्झमाणे उ' इत्यादि । - शब्दार्थ-'संवुज्झमाणे मतीमं णरे-संयुध्यमानः मतिमान्नरः, धर्म को समझनेवाला बुद्धिमान पुरुष 'पावा उ अप्पाण निवट्टएज्जा-पापा पवामानं निवर्तयेत्' पापकर्म से अपन की निवृत्तिकरे 'हिंसप्पस्याईहिंसाप्रमृतानि' हिंसासे उत्पन्न होनेवाले कर्म 'वेराणुबंधीणि-वैरानुयंघीनि' बैरउत्पन्न कराते हैं 'महन्भयाई-महाभयानि' वे महाभय. कारक होते हैं 'दुहाई-दुःखानि' नरक निगोदादि परिभ्रमण लक्षणवाले दुःख दायक होते हैं ॥२१॥ ___ अन्वयार्थ--भाव समाधि रूप धर्म को जानता हुआ मेधावी पुरुष अपनी आत्मा को पाप से निवृत्त कर ले हिंसा से उत्पन्न होनेवाले कर्म वैर की परम्परा को बढाने वाले महान् भय को उत्पन्न करने वाले और दुःख जनक होते हैं। ऐसा जान कर अपने को पाप से हटा ले ॥२१॥ 'संबुज्झमाणे उ' त्यादि शार्थ-संबुज्झमाणे मतिमं गरे-संबुध्यमानः मतिमान्नरः' धन समन. पापा मुद्धिमान, ५३५ ‘पावा उ अपाण निवट्टएज्जा-पापत्वात्मानं निवर्तयेत्' पा५ भथा पाताने निवृत्त ४२ 'हिंसप्पसूयाइ-हिंसा प्रसूतानि' हिंसायी उत्पन्न पापा 3भ 'वेराणुबंधीणि-वैरानुबंधीनि' ३२ ७५- ४२॥ . 'महन्भयाइमहाभयानि' मे पार सय ४।२४ डाय छे. 'दुहाई-दुःखानि' न२३ निगाह વિગેરે પરિભ્રમણ લક્ષણવાળા દુઃખકારક હોય છે. પર૧ અન્વયાર્થ––ભાવ સમાધિરૂપ ધર્મને જાણનારે મેધાવી પુરૂષ પિતાના આત્માને પાપથી નિવૃત્ત કરે. હિંસાથી થવાવાળા કમ વેરની પરંપરાને વધાનારા મહાન ભયને ઉત્પન્ન કરવાવાળા અને દુઃખ જનક હોય છે. ઘરના For Private And Personal Use Only
SR No.020780
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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