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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृताङ्गमले अन्वयार्थः-(जे) ये केचन (सायं च पायं उदगं फुमंता) सायंकाले प्रातः प्रमाते उदकं शीतजलं स्पृशन्तः स्नानादिक्रियां जलेन कुन्तः (उदगेण सिद्धि मुदाहरति) उदकेन-जलेन सिद्धिं मोक्षमुदाहरन्ति कथ न्ति ते मिथ्यावादिनः (उदगम्स फासेण सिद्धि सिया) उदकस्य स्पर्शेन यदि सिद्धिः स्यात् तदा (दगंसि) उदके-जले निवासिनः (बहवे पाणा) बहवोऽने के मस्स्यमकरादयः प्राणाः जीवाः (सिज्मंसु) सिद्धयेयुः सिद्धा भवेयु न तु एवं भवतीति ॥११॥ रूप से निराकरण करने के लिए सूत्रकार कहते हैं-'उदगेण' इत्यादि । शब्दार्थ-'सायं च पायं उदगं फुसंता-सायं च प्रातः उदकं स्पृशन्ता'. सायंकाल एवं प्रातः काल में जलका स्पर्श करते हुए 'जे उद्गेश सिद्धि मुदाहरन्ति-ये उदकेन सिद्धि मुदाहरति' जो लोग जलस्नान से मोक्षकी प्राप्ति होना कहते हैं वे मिथ्यावादी हैं 'उदगम फासेण मिद्धी मियाउदकस्य - स्पर्शन सिद्धिः स्यात्' जलके स्पर्श से यदि मुक्ति मिले, तो 'दगंसि-उदके' जल में रहने वाले 'बहवे पाणा-बहवे प्राणाः' बहुत से जलचर प्राणी 'सिझंप्लु-सिद्धयेयुः' मोक्षगामी हो जाते अर्थात् मोक्ष प्राप्त कर लेते ।।१४। . ......... - अन्वयार्थ-सायंकाल और प्रातः काल सचित्त जल का स्पर्श करते हुए जो लोग जल से मोक्ष कहते हैं, वे मिथ्यावादी हैं। यदि जल के स्पर्श से सिद्धि होती है, तो जल में निवास करनेवाले अनेक मकर आदि जलचर प्राणी सिद्धि प्राप्त कर लेते। किन्तु ऐसा होता नहीं है ॥१४॥ Avt-'सायं च पायं उदगं फुसंता-सायं च प्रातः उदकं स्पृशन्तः' सांग .: संपारे ५inai k५0 ४२तय:'जे उदगेण सिद्धिमुदाहरति-ये उदकेन सिद्धिमदाहरति' बनानथा म.क्ष प्राप्त थवानुयाई , तमा मिथ्यावाही ॐ. 'उदगस फासेण सिद्धी सिया-उदकस्य स्पर्शेन सिद्धिः स्यात्' पाणीना २५शया ने भुति भने त 'दगंसि-उदके.' पालीमा २७वा 'बहवे पाणाबहवे प्राणाः' या प२० १५२ प्रालियो ‘सिझिसु सिध्येयुः' मामाभी 45 જાત અર્થાત મોક્ષ પ્રાપ્ત કરી લેતા. આ ૧૪ सूत्राथ-प्रातःले भने सायाने अथित्त जने। १५२५ ४२नारे "લે કે એવું કહે છે કે જળનું સેવન કરવાથી મોક્ષ મળે છે, તેઓ મિથ્યાવાદી છે. જે જળના સ્પર્શથી સિદ્ધિ મળતી હેત, તે જળમાં રહેનાર મગર આદિ અનેક જળચર પ્રાણીઓ સિદ્ધિ પ્રાપ્ત કરત! પરતું એવું બનતું તેથ. ૧૪ For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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