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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका प्र.श्रु. अ. ६ उ.१ भगवतो महावीरस्य गुणवर्णनम् १६७ मूलम्-किरियाँकिरियं वेणइयाणुवायं, अण्णाणियाणं पडियच ठाणं । से संबवायं इति वेयइत्ता, उवट्टिए संजमदीहरायं ॥२७॥ छाया-क्रियाक्रिये वैयिकाऽनुवाद, मज्ञानिकानां प्रतीत्य स्थानम् । स सर्ववादमिति वेदयिस्वा. उपस्थितः संयमदीर्घरात्रम् ॥२७ अन्वयार्थः-(करियाकिरिय) क्रियाऽकिये-क्रियावाद्यक्रियावादिमतम् (वेगइ. याणुवाय) वैनयिकानुवाद-मतम् (अन्गाणियाण) अज्ञानिकानाम् (ठाणे) स्थान 'किरियाकिरिय' इत्यादि। शब्दार्थ-किरियाकिरियं-क्रियाऽक्रिये' क्रियावादी अक्रियावादी मतको तथा 'वेणइयाणुवायं-वैनयिकानुवाद' विनयवादी के कथनको तथा 'अण्णाणियाण-प्रज्ञानिकानाम्' अज्ञानवादियों के 'ठाणं-स्थानम्' मतको 'पडियच्च-प्रतीत्य' जानकर 'से इति-स इति' वे वीर भगवान् इसप्रकार 'सव्ववायं-सर्ववादम्' सब वादियों के मतको 'वेयइत्ता-वेदयित्वा' जानकर के 'संजमदीहरायं-संथमदीर्घरात्रम्' जीवन भरके लिये 'उचट्टिए-उपस्थितः स्थि । हुए हैं ॥२७॥ ___ अन्वयार्थ क्रियावादियों के, अक्रियावादियों के, वैनयिको के तथा अज्ञानवादियों के मत को जान कर, इस प्रकार से सभी वादों को जान कर भावान महावीर जीवनपर्यन्त संयम में स्थित रहे ॥२७॥ " किरियाकिरिय" त्याह शहा-'किरियाकिरिय-क्रियाऽक्रिये' यपाही मने भयापही भतने तथा 'वेगइयाणुवाय-वैनयिकानुवादम्' विनयाहिना यनने तथा 'अण्णाणि याणं-अज्ञानिकानाम्' अज्ञानयाना 'ठणं-स्थानम्' मतने 'पडियच्च-प्रतीत्य' angla से इति-स इति' ते पा२ भगवान् l प्रभाव 'सव्ववायं-सर्ववादम्' मा याना भतने 'वेदइत्ता-वेदयित्वा' oneीने 'संजमदीहराय-संयमदी. रात्रम' स पन-त 'उपट्ठिए उपस्थितः' स्थित २७या छ. ॥ २७॥ સૂત્રાર્થ–ક્રિયાવાદીઓના, અક્રિયાવાદીઓના, વૈનાયિકેના અને અજ્ઞાનવાદીઓના મતને જાણુંને, આ પ્રકારે સઘળા વ દેને વરૂપને જાણી લઈને, ભગવાન મહાવીર જીવનપર્યત સંયમની આરાધનામાં અવિચલ રહા હતા રછા For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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