________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * सहसा मए दिट्ठो॥१७९।। तालतरूदीहजंघो मसिमसामहिसकालगसरीरो। असिलिट्ठलंबबाहू निग्गयदसणो पलंबोट्ठो॥१८॥ खजोयदित्तचक्खू निल्लालियजमलजुयलजीहालो। अइवीणचिविढनासो वेयालो तावसंजणओ॥१८१॥ अफोडतो बहुसो अभि| गर्जतो तहट्टहासेहिं / पेलयघणनीसणेहिं कुणमाणो नहयलं मुहलं // 182 // चतसृभिः कलापकम् // रे! रे! तइया जं दिनमासि | दइयावहारओ दुक्ख / वइरस्स तस्स अंतं करेमि, दिट्ठो कहिं जासि // 183 // रे वइरिय! बालत्ते जीवंतो ताव कहब छुट्टोसि। इण्हि नो पुण छुट्टसि छुढो भीमम्मि जलहिम्मि // 184 // इय भणिऊणं सहसा पत्तो अईसणं स वेयालो। अहमवि गयणाहितो धसत्ति पडिओ जलनिहिम्मि // 185 // पुणरुत्तजविजंती जाव न सा वहइ नहगमा विजा। ताहे नायं नूर्ण हरियाओ मज्झ वि. जाओ॥१८६॥ कोवि हु एस पयंडो वइरी असुरोत्ति चिंतयंतेण / धणदेव! ताव बाहाहिं जलनिहिं तरिउमारद्धो // 187 // एवं | नरिंद! साहइ जाव य सो मज्झ निययवुत्तंतं / निज्जामएण ताव य सभयं एवं समुल्लवियं // 188 / / भो भो नावियपुरिसा! सकनधारा समुज्जया होह / दीसइ कयंतवयणंव भीममुप्पाइयं जेण // 189 / / सुप्पप्पमाणमुभूयमब्भवद्दलयमुअह नहमग्गे। खलसंगयंव जं कुणइ संखयं झत्ति वर्दृतं / / 190 // एरिसठाणे जायं एवं उप्पाइयं महाघोरं। अइरा सभडनावियनावाइविणासणं कुणइ | // 191 // एयं निसम्म वयणं कूवयखभग्गसंठियनरस्स / पवहणपुरिससमूहो संखुंद्धो विगयजीयासो // 192 // तओ। मुच्चइ नंगरनिवहो कूवयखंभो तिरिच्छओ विहिओ। नावावि सियवडेणं घणेण पच्छाइया सव्वा // 193 // एत्थंतरम्मि 1 असिलिट्ठो-आश्लिटः / २.खद्योतदीप्तचक्षुः। 3 अतिपीनचिपिटनासः। 4 आस्फोटयन् / 5 प्रलयघननिस्वनः। 6 क्षिप्तः / 7 औत्पातिकम् / 8 उअहपश्यत / 1 अचिरात् / 10 संक्षुब्धः / 11 जीयासाब्जीविताशा / 12 तिरिच्छो तिर्य / For Private and Personal Use Only