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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir l सुरसुंदरी चरिअं बारहमो परिच्छेओ // 112 // दृनिवहेहिं // 164|| कविसीसंतरसंठियपक्कलधाणुक्कवाणसंछन्नं / जाय सिरिधरियारणनिष्कंदमराइणो सिन्नं // 165 / / ताव य रोसवसुट्टियअणेयसामंतसुहडनिवहेण / आसासिय नियसिन्नं ढुक्किाइ सालसमुहयं // 166 // उम्भडपसंडिमंडियपयंडकोदंडकंडनिभिन्नो। पायारो कयपुररक्खणोव्य रोमंचमुबहइ // 167 // तो पूरिऊण परिहाओ सत्तुजोहेहिं दीहवंसेहिं / पञ्जालिय परंतं पली| वियं सयलमावरणं / / 168 // लग्गंतजंतपत्थरपडतपायारसिहरपरितुटुं / रहसवसुट्ठियहेलबोलमुहुरियं होइ सत्तुवलं // 169 // अह पडिया कोट्टालयावि गुरुपिहुलपत्थरसुबद्धा / जंतेहिं सुरंगाहि य कसियाहि य विद्दविज्जंता // 170 / / इय परिबलेण सहसा पैराइए पिच्छिऊण पुरसुहडे / रोसवसदैट्ठउट्ठो उग्गीरिय मंडलग्गो हं॥१७१।। पत्तो गइंदपरिसंठियस्स सत्तुंजयस्स आसन्ने / भणिओ य इमो रे ! रे ! दिट्ठो तं अज कालेण // 172 / / जो मह दइयाजणयस्स परिभवं कुणसि अकय वेरस्स / अहवा विणाससमए होइ फलं वंसविडवस्स // 173 // युग्मम् / / पुरिसो भवसु इयाणि जइ सञ्चं सुहडवायमुव्वहसि / चित्तण तयं केसेसु झत्ति अह मत्थयं | छिन्नं // 174 / / अह लुयसीसं दट्टण सामियं परिवलं ससंभंतं / वलिऊण बाणनियरेण घाइउं में समाढतं // 175 / / / ___अह तं सुतिक्खसरनियरधोरणिं वंचिउं पयत्तेण / पत्तो ससोयनरवाहणस्स अत्थाणभूमीए // 176 // सत्तुंजयस्स सीसं पुरओ मोत्तूण कयपणामेण | धणदेव ! पुव्ववुत्तो वुत्तंतो साहिओ तस्स // 177 // ता अच्छ निरूविग्गो अयं पुण जामि रयणदीवाओ। आणेत्तु तुम्ह धूयं जेण समप्पेमि सिग्छति // 178 // इय भणिऊणुप्पइओ दइयामुहदंसणुस्सुओ जाव / पत्तो इमं पएसं ताव य 1 अरातिः शत्रुः। 2 पसडि कनकम् / 3 कंडे काण्डम् / 4 प्रदीपितम् ज्वालितम् / 5 कलकलः / 6 पराजितान् / 7 दउट्ठो-दष्टौष्ठः। 8 मण्डsel लाग्रम्-खडगः / 9 लनशीर्षम् / 10 तिक्ख तीक्ष्णम् / 11 धोरणिः समूहः / 12 आस्थानम् सभा / 13 वुत्तोउक्तः / // 112 // For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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