________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी चरि। अट्ठमो परिच्छेओ। //68o. नरयनयरस्स // 161 / / जह किंपागफलाई भुत्ताई दुहावहाई इह होति / तह इत्थीसुरयसुहं मणहरमवि दोग्गई नेइ / / 162 // जह विसमीसं सरसंपि भोयणं जीवियं हरइ भुत्तं / तह सुंदरावि रमणी रमिया नणु दोग्गई देइ // 163 / / ता उज्झसु अणुरायं कुगइनिमित्ताए निययदइयाए / पंचमहन्वयजुत्तो होसु तुम चरणनिरउत्ति // 164 // एवं दिवसे दिवसे संवेगकरेहिं महुरवयणेहिं / बोहि| अंतो मणयं जाओ अह पैयणुरागो सो॥१६५।। अन्नदिणे एगते गुरुपुरओ अंजलिं करेऊण / धणवाहणो स एवं वजरई परमसंविग्गो॥१६६।। तुम्हाणममयभूए वयणे निसुएवि मज्झ हिययाओ। किं नो सैकइ रागो विसंव दुस्स सप्पस्स?॥१६७॥ भयवं! | ताव न तुट्टइ दइयाए उवरि सव्वहा रागो। नवरं करेमि एकं जइ जुत्तं तुम्ह पडिहाइ // 168 / सुरयसुहनिप्पिवासो दिक्खं गि| हामि तुम्ह पामूले / दइयाए समं अयं दंसणमित्तेण संतुट्ठो॥१६९।। एवं ववत्थियम्मि जइ जोग्गं देह मज्झ तो दिक्ख / तीए | अदंसणेणं सक्केमि न जीवियं धरिउं // 170 // तव्वयणं सोऊण य सुधम्मसूरी विचिंतए एवं / पेच्छह अइदुरंतो रागो कह विलसए | लोए // 171 // एवंपि ता दिजउ पञ्चजा ताहि गहियसुत्तत्थो / सयमेव विवेगजुओ उझिस्सइ रागसंबंधं // 172 / / एवं विचिंति| ऊणं अणंगवइयाए संजुओ ताहे / धणवाहणो संभाया गुरुणा पवाविओ विहिणा // 173 // चंदजसानामाए मयहरियाए समप्पिया सावि / साहुणिगणमझगया सिक्खइ वरसाहुणीकिरियं / / 174 // एवं च ताण दोण्हवि परोप्परं जाव तुट्टइ न रागो। बहुणावि हु|* कालेणं सुत्तत्थ विसारयाणपि // 175 / / ताव य गुरुणा भणियं एगते भारईए महुराए / एयं न जुत्तमहुणा उत्तमसत्ताण तुम्हाण // 176 / / // युग्मम् // अविरइजुवइजणेवि हु सवियारपलोयणम्मि साहुस्स / पायच्छित्तं गरुयं भणियं सुत्ते जिणिदस्स // 177 / / जं पुण साहुणि१दुर्गतिम् / 2 प्रतनुः अल्पः / 3 वष्कते-अपगच्छति / 4 स्वभ्राता / // 68 // For Private and Personal Use Only