________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरीचरि। अट्ठमो परिच्छेओ। // 63 // मया होता / ता किं मज्झ निमित्त होञ्ज इमा आवया तुज्झ१ // 18 // एसो मुहमहुरोवि हु परोप्परं अम्ह गरुयअणुराओ / गम्भोव्व वेसराए जाओ गरुआवयाहेऊ॥१९॥ इहि च तुमं सामिय! कम्मं अवलंबिऊण थक्को सि / आवयनिवारणत्थं न चिंतसे किंचिवि उवायं // 20 // तत्तो य मए भणियं मा सुंदरि! कुणसु किंचिवि विसायं / अॅवियारिय कयकजं एरिसयं होइ नणु सुयणु ! // 21 // | अप्पबलं च परवलं अणवेक्खिय आढेवेह जो कर्ज / अवमाणपाणनासं अवस्से सो पावए पुरिसो // 22 // नीईए वट्टमाणा मणुया न लहंति आवयानिवहं / सुयणु ! मए का नीई तुम हरतेण विहियत्ति? // 23 // विहियं रायविरुद्ध अणुरायपरबसेहिं अम्हेहिं / | ता इण्हि आवयाए सुयणु ! विसाओ न कायव्वो // 24 // किंच / एवं ठिएवि सुंदरि ! अणुकूलो कहवि जइ विही होइ / ता आवयावि अम्हं परिणमिही संपैयत्तेण // 25 // बलिओ हु इमो सत्तू ताव य सझो न पुरिसगारस्स / पुन्वभवनिम्मिएहिं वारिजइ नबरि पुनहिं // 26 // जइ ताव अस्थि पुन किं कर्ज सुयणु! पुरिसगारेण / अह नस्थि किंचि पुनं विहलो ता पुरिसगारोवि // 27 // एक्कत्तो मह पुन अन्नत्तो दप्पिओ इमो सत्तू / पेच्छामो ता सुंदरि ! कस्स जओ होज एयाण ? // 28 // एमाइबहुविगप्पं उल्लवमाणो पियाए सह जाव / भो सुप्पइट्ठ! पत्तो तुरियगई इह |पएसम्मि // 29 // ताव य तुरिययरगई पत्तो नहवाहणो मह समीवं / रोसायासासंजियसोयजलोहलियगंडयलो // 30 // भणिय च / . मृता / 2 भापत् / 3 वेसरी अश्वतरी / 4 स्थितः / 5 अविचार्य / / अनवेक्ष्य अपलोच्य / . आढवेइ आरभते / 8 अपमानं च प्राणन्प्रशश्च तयोः समाहारः / ९भवश्यम्। 10 परिणेस्यति / " संपत्त्वेन-संपत्तिभावेन आपत्तिरपि संपत्तिरूपा भविष्यतीति भावः / 12 मत्पुण्यशत्रदर्पयोर्मध्य इत्यर्थः। // 63 // For Private and Personal Use Only