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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सो परिच्छेओ। 16 सुरसुंदरी | वरनिज्झराई कयकोइलरवाई // 21 // किंनरसुरमिहुणऽद्धासियाई सियकंतकंतिकलियाई / लंघतो रम्माई गिरिवरगुरुसाणुसिहराई चरि। // 214 // बहुविहवावारपरायणेण सहियाइ खयरलोएण / पेच्छंतो गामाइयं पमुइयनरनारिपुनाई // 215 // दक्खिणदिसामुहो है बच्चामि कमेण जाव गेहणम्मि। दराओ ताव दिढ तडिल्लयासच्छहं किंचि // 216 // तं दठ्ठ मए भणियं किं मन्ने एरिसं इम // 6 // दइए। दीसइ अइतेइल्लं एतं अम्हाण संमुहयं // 217 // भणियं च तीए पिययम ! विज्जू उक्का व ताव नवि होई / थिरभावाओ, नवरं होज सुरो सुरविमाणं वा // 218 // भो सुप्पइट! एवं उल्लवमाणाण अम्ह सहसत्ति / भासुरसरीरधारी समागओ सुरवरो एको // 219 // नमिओ य भणई एसो| अवि कुसलं तुम्ह चित्तवेगत्ति ? / परियाणसि भद्द ! ममं नवत्ति, तत्तो मए भणियं // 220 / / जाणामि कंपि देवं सामनेणं, विसेसओ न पुणो / भणियं सुरेण तत्तो चिरपरिचियमवि न याणेसि // 221 // विणयपणएण भणियं इह जम्मे परिचयो न तावत्थि। जइ नवरं अनभवे तुमए सह मह महाभाग! // 222 / / नवरं तुमम्मि दिट्टे दिट्ठी आणंदिया मणं मुइँयं / जाणामि तेण कोषि हु पुचभवे आसि संबंधो॥२२३॥ एवं च मए भणिए पँयडीकाउं फुरंततेइल्लं / वञ्जरइ सुरवरो सो मित्त ! मणि गेण्ह एयंति // 224 // मणिणो समप्पणत्थं समागओ सुयणु ! तुह समीवम्मि / तम्हा विसहरमहणं ''गेण्हसु पवरं मणिं एवं // 225 // तत्तो य | मए भणियं सुरवर ! वञ्जरसु ताव मह एयं / निक्कारणा पवित्ती न होइ जं उत्तमा विति // 226 / / ता केण कारणेणं मज्झ समप्पेसि 1 अध्यासितानि अधिष्ठितानि / 1 गहने निर्जलस्थाने / 3 तेइल्लं तेजस्वि / 4 आयत् आगच्छत् / 5 विद्युत् / 6 उल्का। . मुदितं इर्षितम् / 8 प्रकटीकृत्य / 9 समर्पणार्थम् / 1. गिण्ड / // 6 // For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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