________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिणामे सुंदरं जमिह // 198|| मुहरसियं परिणामे य दारुणं सजणा न संसति / उवगारं विसमीसियमोयणदाणंव खुहियस्स | // 199 / / एयस्सवि मह सुंदर ! पडिहासइ न सुंदरो परिणामो। नवाहणो हि जेणं विजाबलदप्पिओ चंडो॥२००॥ दारावहारवेरं अइगरुयं हंदि ! एत्थ लोयम्मि / ता भद्द! तुम चिंतसु नित्थारो कह णु रायाओ? ॥२०१|तत्तो य मए भणियं विचिंतिएणं तु * एत्थ किं बहुणा / तं चेव किंचि होही जे दिढ मज्झ पुग्नेहिं // 202 / / अइदुल्लहावि हु मए संपत्ता विहिवसेण जह एसा / अचंपि सुंदरं तह ! होही भवियव्ययादिढ // 203 // भणइ तओ चित्तगई एवं एयं तु निच्छयमएण / तहवि हुन होइ जुत्ता एसा पाय|प्पसारणिया // 204 // ततो य मए भणियं एवं तु वैवस्थियम्मि कजम्मि / जे कायवं संपइ तं चेव य इत्थ साहेसु // 205 / / भणइ | तओ चित्तगई पलायणं चेव संपयं उचियं / नियनयरग्मिवि गमणं संपइ उचियं न होइत्ति // 206 / / महई वेला वह अच्छताण इमम्मि ठाणम्मि / ता मा करेसु इण्हि कालक्खेवं महाभाग ! // 207 // तह कहवि हु कायव्वं सरीरहाणी न होइ जह मित्त! / सुरनंदणम्मि नयरे अहंपि एत्तो गमिस्सामि // 208 / / जलणप्पहेण समयं च संगैयं क? असणिवेगस्स / तेण विश्न एवं परिणेस्सं पुष्वभवदइयं // 209 // भो सुप्पइट! एवं भणिऊण पियंगुमंजरीइ समं / चित्तगई उप्पइओ पत्तो य कमेण सहाणं // 210 // तत्तो तमालदलसामलम्मि गयणे अहंपि उप्पइओ / भो सुप्पइट्ट ! सहिओ दइयाए कणगमालाए / / 211 // नववियसियअरविंदविंदसंछनसच्छसलिलाई / पुलएंतो विउलसरोवराई वरहंसकलियाई // 212 // फलभरविणमियसाहासहस्ससोहंतसाहिसहियाई / पिच्छंतो गिरि 1 प्रशंसन्तीत्यर्थः / 2 निस्तारस विमुक्तिः / 3 व्यवस्थिते। / आसीनानाम् / 5 संगत मैत्रीम् / ( कृत्वा। For Private and Personal Use Only