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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अत्यंत रक्त एवा सुखसाना होने कोनी साथे उपमा श्रापीए ? कारण के, प्रवाला कांतिवालां वे परंतु कठीण बे. वली विवफल २ ते (कोमल उतां) कांति रहित . तेथी तेनी पण उपमा श्रापी शकाती नथी. अर्थात् सुलसाना होठ कोई वस्तुनी || उपमा श्रापी शकाय तेवा नथी. ॥५१॥ निश्चे कलंक रहित, गोलाकार अने | निरंतर उज्वल एवं सुलसानुं मुख, हरणना कलंकवाला, निरंतर (पदार्डमां )गो. मुखं यदीयं 'किल निष्कलंकममुक्ततत्तं च सदोज्ज्वलं च ।। कलंकिना टैत्तमुचा "दिवापनासा कथं चंडमसा समं स्यात् ॥५॥ " नितिः कंबरिव विजिह्वो, रेखात्रयालंकृतचारुनासा॥ कंठेन यस्या मधुरस्वरेण, वैक्रोंतेराँसी हिज्ज्वलोऽपि ॥५३॥ लाकार रहित श्रने दिवसने विषे कांति रहित चंजना सरखं केम होय ? अर्थात् सो || त्तम एवा सुखसाना मुखने चंनी उपमा घटती नथी. ॥ ५५ ॥ जे सुलसाना त्रख रेखाथी सुशोजित, मनोहर कांतिवाला अने मधुर स्वरवाला कंठे तिरस्कार करेलो शंख, खल पुरुषनी पेठे ब्हार उज्वल उतां पण अंदर वांको थयो . ॥ ५३ ॥ - For Private and Personal Use Only
SR No.020772
Book TitleSulsa Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidya Shala
Publication Year1899
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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