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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुलसा ॥१ ॥ सिकानुं समानपणुं पामवाना हेतुथी, तिलनुं पुष्प अत्यंत हसीने ( विकस्वर थश्ने )सर्गरलो. पडतुंरतुं माणसोने एम कहे जे के, जे पुरुषो था लोकमां म्होटाउँनी साथे ावाला थाय , तेनुं निश्चे पडवापणुं थाय बे. अर्थात् सुलसानी नासिका, तिलना पुष्पथी पण घणी ज रमणीय हती. ॥ ४ ॥ जे था लोकने विषे नेत्रोदकना (आंसुना) स्पर्श यो बाप्पसंपर्कवशापीह, मालिन्यनारं नजते हणेन ॥ तस्याः कपोलो "किमु दर्पणेन, तेनोपमामो "विमलौ सदीपि॥ काठिन्यदोष पैंजतीद लोके, यविजुमो "बिंबमकांतिमचें ॥ 'केनोपमामोऽधरमेतदीयं, कात्या कैलं कोमलमिइरागम् ॥ २१॥ थी ज क्षणमात्रमा मलिन थई जाय , ते दर्पण साथे सुलसाना निरंतर निर्मल रहे। नारा एवा कपोल(लमणा)नी शुं उपमा थापीए? अर्थात् सुलसाना निरंतर निर्मल || २ ॥ रहेनारा एवा लमणानी साथे नेत्रोदकधी क्षण मात्रमा मलीन थई जनारा दर्पणनी उपमा थापी शकाती नथी. ॥५०॥श्रा लोकने विष कांतिए करीने सुंदर,कोमल श्रने For Private and Personal Use Only
SR No.020772
Book TitleSulsa Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidya Shala
Publication Year1899
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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