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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुलसा अत्यंत शोने .अर्थात् श्रा राजा समशेर बहादुर हतो. ॥ २७॥ कवि उत्प्रेक्षा करे |सर्गरलो. डे के, जे श्रेणिक राजाना यशना समूहे उज्वल करेला, सर्व विश्वमां (ते उज्व। ॥२४॥ लपणानी अंदर) अदृश्यपणाने पामेलो एवो पोतानो पति जे शंकर, (तेने) पार्व तीए पोताना देहनी साथे जोडी दीधो , एम टुं मानु ढुं. अर्थात् उज्वल एवा शंकर, श्रेणिक राजाना उज्वल यशमां अंतान् थर जवाथी पार्वतीए तेमने पोताना / शुक्लीकृते यस्य यशोनरेण, विश्वे समस्ते गिरिराजपुत्र्या ॥ अलयनावं दधदात्मन", स्युतः स्वदेदेन सैदेति मन्ये ॥२॥ तेजूपलावण्यजलं पिबत्यो, 'देवांगना नेत्रपुटैः सदैव ॥ 'विस्फारितादयो हेदि बैंधागा,प्रौप्ताः समस्ता अनिमेषनावम् ॥el देहमा जोडी दीधा . एज हेतुथी शंकर अने पार्वती साथे रहेला . ॥ २७ ॥ पहो l ला नेत्रवाली अर्थात् पोतानां नेत्र बरोबर उघाडीने जोनारी, निरंतर नेत्र रूप पडि ॥ १४ ॥ याए करीने श्रेणिक राजाना रूपना मनोहरपणा रूप जलनुं पान करती अर्थात् श्रे माणिक राजाना रूपने जोती एवी सर्व देवांगनाउँ, पोताना हृदयमां प्रीति धारण करी | ००००००००००००००००००००००००००००००००००००००० 96܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀$$$܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀ For Private and Personal Use Only
SR No.020772
Book TitleSulsa Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidya Shala
Publication Year1899
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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