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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir KISASS सुदंसणा तहाहि-फरिसरसगंधरूवझुणिजणियसुहसंगवाउलियचित्ता । जह जीवा जंति खयं, तुम पि तह निव ! निसामेहि द सीलवइचरियम्मि ॥१०४॥ सयणासणसंबाहणवरंगणासंगसुक्खतल्लिच्छो । फरिसिंदियसुहलुद्धो, करिब पावेइ गरुयदुहं ॥१०५॥ महुरन्नपाण-| संविहाणो तू भोयणविविहरसासत्तमूढो मच्छुब । रसणिंदियसंगिद्धो, पावइ अन्नो वि खलु मरणं ॥१०६॥ मयणाहिकुसुमकुंकुमकालागु-| पंचमु रुसुरहिगंधलुद्धमणो । नाससुहासत्तो छप्पर व पावेइ खलु वसणं ॥१०७॥ विन्भमविलाससोहग्गरूवलायण्णकतिकलिएसु । Cइसो। रूवनिरूवणपवणो, पावइ मरणं पयंगु च ॥१०८॥ कलमहुरगेयवरजुवइनेउरारावअवहरियचित्तो। सवणसुहाऽऽसंगपरो, पावइ हरणु व लहु दुक्खं ॥१०९॥ इकिको वि हु विसओ, इहयं पि दुहावहो परत्थ पुणो । जीवं पाडइ नरए, किं पुण पंचेव य पउत्ता? ॥११०॥ एवं भाउय! पंचविहविसयसुहकंखिरो सया जीवो । अलहतो विरइसुह, पुणो पुणो भमइ संसारे ॥११॥ परिभाविऊण एयं, तुमं पि मा भाय ! पुच्छिहिसि जम्हा । एसा महई खु कहा, जाणिहिसि जणस्स पासाओ ॥११॥ दा किंच-नियदुक्खया वि वत्ता, साहिजंती परस्स कमवि गुणं । न कुणइ सपरस्स पुणो, विसेसओ जणइ संतावं ॥११३॥ अह भणइ सिट्टिपुत्तो, अवितहमेयं तए समुल्लवियं । उवहासं जणइ जणे, जं नियदुक्खं कहिजतं ॥११४॥ किंतु सदुक्खे 15 अइदुक्खियं परं पिक्खिऊण विहसेइ । सुक्खे पुण अइसुहियं, हरिसविसाओ न कायबो ॥११५॥ हा अण्णं च-जे आवईसु धीरा विवंमि अगविया अमच्छरिणो । परवसणेसु सहाया, ते पुरिसा पुरिसगणणाए ॥११६॥ किं चुजं ? जं खलु आवयाओ बहुआओ हुंति मणुआणं । खंडणगहणत्थमणं, पावइ चंदो वि दिववसा ॥११७॥ इट्टवि ॥१९॥ ओगो वहबंधणाई विहवक्खओ अवित्ती । ठाणभंसो मरणं विहिणा विहियं इमं सुलहं ॥११८॥ ता मा कुणसु विसायं, जं ISTARARASIS For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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