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सीलवइसंविहाणो पंचमुदेसो।
सुदंसणा- सुद्धसीलसम्मत्ता । उवसग्गवग्गसंसग्गसंगया धरइ धीरत्तं ॥७६॥ विसमदसा पत्ता वि हु, सहावओ असमसाहससहाया। चरियम्मि भयमोहसोयरहिया एगग्गमणा अदीणमुहा ॥७७॥ कम्मटुगंट्ठिनिट्ठवणजिट्ठपरमिट्ठिघुट्ठनवकारा । भवजलहिजाणवत्तं व
सरइ सा सुचयजिणिदं ॥७८॥ तह धीरमणा नरवर !, सीलवई सा तहिं समुन्भेइ । तणपूलं तरुसिहरे, आसा दुपरिच्चया है ॥१८॥
का जम्हा ॥७९॥ जह कोइ कयाइ इहं, करुणाए दह्र भिन्नपोयमिणं । आगच्छिज्ज तओऽहं, तेण समं जामि वैसिंगभुवं ॥८॥
अह एगंमि पएसे, सिलायले आलिहेबि जिणपडिमं । सिरिमुणिसुवयपहुणो, सपरियरं चंदणरसेण ॥८॥ सुरहिसयवत्तINकुसुमेहिं भावओ विरइऊण वरपूयं । कयपंचंगपणामा, भत्तिब्भरुक्करिसिया थुणइ ॥२॥
। तंजहा–सिरिमुणिसुव्वय! सुबय !, सुबयमुणिविंददिसियसिवमग्ग!। सिवमग्गरहसुसारहि ! रहियजरामरणवरनाण!
८३॥ वरनाणपयासियपुण्णपाव ! पाविंधणोहसंजलण! संजलणकोहजलहर ! जलहरनिग्घोससमसद्द ! ॥८४॥ समसद्दसुबोहियसबजीव ! जीवाइकहियनवतत्त! तत्ततव ! तवविणासियसियगुरुकम्मगय! गयगइय! ॥८५|| इयथुणिउं चउगइगमणनास! नासवियभवियभवदुक्ख !। भवदुक्खकक्खपावय ! पावय! मुत्तीइ जयसु । चिरं ॥८६॥ [संकलिकाबंधः]] इय थोउं जिणनाहं, पंचनमोक्कारतप्परा देव!। जा चिट्ठइ सीलवई, जिणपुरओ वरसमाहिए ॥८७॥ ता तरुणतरणिकरनियरसुसियतरुपत्तसुरसुरारावो । कंसालझुणिसरिसो, सुइविवरे आगओ तीए ॥८८॥ अह एगो वरपुरिसो, वरवत्थाहरणभूसियसरीरो । परिमियपरियणसहिओ, संपत्तो तत्थ तं नियइ ॥८९॥ चिंतइ य इमा अमरी खयरी वा माणवी व
१ भन्नप्रवहणचिह्नम्। २ दुष्परित्यजा। ३ वासस्थाने। ४ सयवत्त० शतपत्र-कमल। ५ कक्ख० तृण। ६ पावक! पवित्र करनेवाला।
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॥१८॥
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