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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५ ) विद्यादि यत्न से आते है। यत्नानुसारिणी विद्या, लक्ष्मीः पुण्यानुसारिणी। दानानुसारिणी कीर्ति-बुद्धिः कर्मानुसारिणी ॥ ८१ ॥ देवपूजा में कैसे पुष्प लेना ? नैकपुष्पं द्विधा कुर्या-न्न छिन्द्यात् कलिकामपि । चंपकोत्पलभेदेन, भवेदोषो विशेषतः ।। ८२ ।। गुरु कैसा होना चाहिए। नरयगइगमणपडिह-त्थए कए तहय पएसिणा रण्णा। अमरविमाणं पत्तं, तं आयरिअप्पभावेण ॥ ३ ॥ अभयदान महिमा । हेमधेनुधरादीनां, दातारः सुलभा भुवि । दुर्लभः पुरुषो लोके, यः प्राणिध्वभयप्रदः ॥८४॥ पशुधात करनेवाले की दशा। यावन्ति रोमकूपाणि, पशुगात्रेषु भारत ! । तावन्ति वर्षलक्षाणि, पच्यन्ते पशुघातकाः ॥ ८५ ॥ भावना से क्या होता है ? दारिद्यनाशनं दानं, शीलं दुर्गतिनाशनं । अज्ञाननाशिनी प्रज्ञा, भावना भवनाशिनी ॥ ८६ ।। ऋषि का उपशमभाव । सारंगी सिंहशावं स्पृशति सुतधिया नन्दिनी व्याघ्रपोतं, मार्जारी हंसबालं प्रणयपरवशा केकिकान्ता भुजंग । For Private And Personal Use Only
SR No.020763
Book TitleSubhashit Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhsagar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1934
Total Pages228
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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