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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८ સ્ત્રીઓને સદેશ. - “सबकी नसों में पूर्वजों का पुण्य रक्तप्रवाह हो, गुण, शील, साहस, बल तथा सब में भरा उत्साह हो। सब के हृदय में सर्वदा समवेदना का दाह हो, हम को तुह्मारी चाह हो, तुम को हमारी चाह हो॥ विद्या, कला, कौशल्य में सब का अटल अनुराग हो, उद्योग का उन्माद हो, आलस्य-अघ का त्याग हो। "सुख और दुःख में एक सब भाइयों का भाग हो, अन्तःकरण में गूंजता राष्ट्रीयता का राग हो ॥ “कठिनाइयों के मध्य अध्यवसाय का उन्मेष हो, जीवन सरल हो, तन सबल हो, मन विमल सविशेष हो । छटे कदापि न सत्य-पथ निज देश हो कि विदेश हो, ___ अखिलेश का आदेश हो जो व सबही उद्देश हो ॥ आत्मावलम्बन ही हमारी मनुजता का मर्म हो, षड्रिपु-समर के हित सतत चारित्र्यरूपी वर्म हो । भीतर अलौकिक भाव हो, बाहर जगत का कर्म हो, प्रभु-भक्ति, परहित और निश्छल नीति ही ध्रुव धर्म हो । उपलक्ष के पीछे कभी विगलित न जीवनलक्ष हो, जब तक रहें ये प्राण तन में पुण्य का ही पक्ष हो। कर्तव्य एक न एक पावन नित्य नेत्रसमक्ष हो, संपत्ति और विपत्ति में विचलित कदापि न लक्ष हो । उस वेद के उपदेशका सर्वत्र ही प्रस्ताव हो, सौहार्द और मतैक्य हो, अविरुद्ध मन का भाव हो । सब इष्ट फल पावें परस्पर प्रेम रखकर सर्वथा, निज यज्ञभाग समानता से देव लेते हैं यथा ॥ सौ सौ निराशाएँ रहें, विश्वास यह दृढ मूल है- इस आत्मलीला भूमि को वह विभु न सकता भूल है। अनुकूल अवसर पर दयामय फिर दया दिखलायँगे, वे दिन यहाँ फिर आयेंगे, फिर आयेंगे, फिर आयेंगे। माया "त. १५ माटीम२ १८१४. For Private and Personal Use Only
SR No.020760
Book TitleStreeone Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevkibai Mulji Vaid
PublisherDevkibai Mulji Vaid
Publication Year1917
Total Pages170
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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