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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्था नाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ ३६५॥ www.kobatirth.org केमके पश्चात्ताप सहित होवाथी, परंतु परना पाप - अपराधने जोतो नथी, केम के तेथी तो उदासीन होवाथी. १, अन्य पुरुष तो परना दोषने जुवे छे परंतु पोताना दोषने जोतो नथी, केम के अहंकार सहित होवाथी. २, अन्य पुरुष स्व-परना दोषने जुवे छे, केम के पश्चात्ताप सिवाय यथार्थ वस्तुनो बोध थवाथी. ३, कोईक तो बने ( स्व - पर ) ना दोषने जोतो नथी, केम के विशेष मूढ होवाथी ४. (२) कोई एक पोताना पापने जोईने कहे छे अर्थात् एम कहे के 'में आ पाप कर्तुं छे' अथवा शांत थयेल[ क्लेशादि ]नी फरीथी प्रवृत्ति करे छे, अथवा वज्ररूप कर्मनी उदीरणा करे छे अर्थात् [ बीजाने ] पीडा उत्पन्न करवावडे उदयमां कर्मने प्रवेशावे छे. (३) एवी रीते उपशमावे छे अर्थात् पाप अथवा कर्मने दूर करे छे. (४) 'अन्भुट्ठेइ' ति० अभ्युत्थान करे छे एटले के गुरु विगरेने आवतां जोईने आसनथी ऊभो थाय छे, बीजा पासे अभ्युत्थान करावतो नथी ते कोण ? संविज्ञपाक्षिकX अथवा लघुपर्यायवाळो मुनि. १, फक्त अभ्युत्थान करावे ज छे ते कोण ? गुरु. २, अभ्युत्थान करनार अने कवनार ते कोण ? गीतार्थ स्थविरादि ३, अभ्युत्थान करे नहि अने करावे नहि ते कोण ? जिनकल्पिक अथवा अविनीत शिष्य. ४ (५) एम ज वंदनादि सूत्रोमां पण चार भांगा जाणवा. विशेष ए के द्वादश आवर्त्तनादिद्वारा वंदन करे छे. (६) वस्त्रादिना दानवडे सत्कार करे छे. (७) स्तुति विगेरेथी गुणोनी उन्नति करवावडे सन्मान करे छे. (८) योग्य पूजा* टीकाकारे बीजा भांगाओ ज्यां कहेल नथी ते स्थळे मूलना अनुवादधी जाणी लेवा. फक्त एक भांगो कहेल छे तेना अनुमारे बीजजोडवा. X शुद्ध रूपक परंतु शुद्ध क्रिया न करनार तेमज मुनिवेषने धरनार ते संविज्ञपाक्षिक, विशेष जिज्ञासुए श्री धर्मदासगणिविरचित उपदेशमाळा नामक ग्रंथमां जोवुं. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir EXC ४ स्थान काध्ययने उद्देशः १ आपातभ द्रकादि पू० २५५ ।। ३६५ ।।
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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